एक कविता
मेरी मनोरम कल्पना की अनाम आवाज थी वह,
मेरी मनोरम कल्पना की अनाम आवाज थी वह,
उसके सौंदर्य की पराकाष्ठा मेरे मनःस्थली में
उथल-पुथल करती आज-भी...हजारों कोस दूदूरररर........
गगन में निकल जाती है,
खुबानी-सा उसका बादामी चेहरा बोले तो जैसे
मुखमंडल से शहद टपक रहे हों हंसे तो ओस
के मोती झिलमिल-झिलमिल कर उठे…
घुंघराले सुनहरे काले बाल, आसमानी आँखें,
झरने से उठते उजले फेन की तरह उसकी
बाहों को मैं बस... देखता हीं रह जाता हूँ…
उसके खुशी के अश्क जब-भी मेरे दामन पर गिरते,
मानो सारे गगन के सितारे उसमें समाविष्ट हो गये हों…
उसकी पलकों के भीतर मंदाकनी की तरह कल-कल
करते अंश्रु ऐसे दिख पडते जैसे जाम अभी छलकने
को व्याकुल हो किंतु इसे थामने बाला न आया,
जिसप्रकार दिवा-रात्री एवं चांद-चकोर का मिलन नहीं हो पाता,
दोनों खामोश... एक-दुसरे की प्रतीक्षा में अपना समय खो देते हैं--
न तो सुबह की मोहक छटा को रात्री देख पाती है और
ना ही रात्री के अद्भुत सौंदर्य का दिवा अभिनंदन कर पाता है.
बेशक वो एक परी के समान थी लेकिन उसके बाह्य सुंदरता
का तो प्रत्येक व्यक्ति कायल था, किंतु उसकी अंतरात्मा से
उठते स्नेह की लहर को किसी ने स्पर्श किया...
6 comments:
बेशक वो एक परी के समान थी लेकिन
उसके बाह्ये सुंदरता का तो प्रत्येक व्यक्ति कायल
था,किंतु उसकी अंतरात्मा से उठते स्नेह की
लहर को किसी ने स्पर्श किया...
---सुंदर भाव हैं, बधाई.
Sir, kavita to aap achchi likhte hi hain. Apke bahakte, mahakate bhaav samaanya ko asamanya, sadharan ko asadharan, banaate hain, bhaasha chamatkrat karti hai, khaas kar tatsami chamak se dur, "bole to", par saath hi nirash bhi karti hai ki APKI bhasha par HAMARI bhasha bas ek hi jagah haavi ho saki!!
दिवा-रात्री एवं चांद-चकोर का मिलन
नहीं हो पाता,दोनों खामोश... एक-दुसरे
की प्रतीक्षा में अपना समय खो देते हैं--
beahd sundar bhavaao se rachi hui hai yah ek kavita ...padh ke bahut achha laga [:)]
ranju
समीर भाई,
एकबार पुन:शुक्रिया…जो मेरी कविताओं को सराहा…!
रवीन्द्र,
तुमने जो शब्द लिखे उसका धन्यवाद…किंतु तुम्हारी अंतिम पंक्ति समझ नहीं पाया…!!
रंजु,
मेरी भावनाओं को सराहा…यह एक लेखक के लिए बहुत है…शुक्रिया!!
बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति है।अति मधुर संगीत के साथ कविता पढ़ने से मन भाव-विभोर हो जाता है।अति सुन्दर......इसे इतना ही खूबसूरत बनाए रखें.... ढ़ेरों बधाई।
डा. रमा द्विवेदी
Hello Rama Madam,
मेरी कृति के आंतरीक अभिव्यक्ति को इतने करीब से महसूस किया और मेरे जाल स्थान पर आईं इसका शुक्रिया!
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