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तू ही मेरी प्रतीक्षा है…!!!



है वह अनगिनत सुरों की साधना

यहाँ से वहाँएक छोर से दूसरे तक

वादियों में बिछे शबनम की शीतलता

मेरे भागते जीवन की आश्ना

किसी संध्या की शांत कहानी की भंगिमा

ज़ूस्तजू है या मेरी कल्पना की तृप्ति'का

कोई सोंच हो मेरी या मेरे अनुमानों की मूर्त मीमांसा


कुछ तो हो
ssssनहींssss सबकुछ!!!

अब तो यह आलम ही बदनसीब हुआ है जो

शब्द-चादर में समेटना चाहता है तेरी अंगराइयों को

मगर स्वयं तुम व्यक्त हो इशारों में कहीं भी


सुनी थी सिसकियाँ तुम्हारी एकांत झुरमुट से

जहाँ गिरे थे वह मोती मेरे आग्रह में

ज़ुबां खामोशनमीं फैली है पलकों मेंतड़पती सांसे

तेरी यादों के आगोश में घुटता ही रहता है


शमां की पवित्र लाली में जलता जाता हूँ
तेरे लिए

कभी रुख़सत होता हूँ खुद सेतेरे लिए

बिखड़े हुए सपनों के पोरों को जोड़ता जाता

तन्हा राहगीर फिरता रहतादर-ओ-दर

यही तो उलझन है जो हमेशा अपने से भटक जाता हूँ


अब तो जज्बात भी सो गये झील की गहरी गोद में

वही तो कुछ मिलन की यादें सहर हैं मेरे अनुरागी मन में

टपकते जाते मेरे सलिल फलक में समां

बरस जाते हैं तेरे यौवन परपैगाम देते हैं


खड़ा हूँ मैं
……

अभी-भी उसी राह पर

जहाँ चांद पूरा खिला हुआ था

अब्र पानी से भरा और धरा से मिलन चाहता था

आशियां सुबह की ताजगी के नेत्रों से पुलकित थी


sssssss मेरी दिलकश नाज़नीन

इशारा है यह भी उसी तरह,

शमां भी अद्भुत है उसी तरह,

अब तो बसंत के बादल भी आ गये

बस मेरी इन बांहो को प्रतीक्षा है उसी तरह

5:54 PM
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5:54 PM

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खुशबू है 'वह' विभिन्न रंगों की…!!!



थोड़ा-थोड़ा साथ उसी का, सत्य भी है अखंड भी

मेरे अंगों की खुशबू, मेरा अहंकार है वह

अफसाना भी है वह, कोई तराना भी है

लेखक की कल्पना है वह,कोई कलम की रवानगी भी है


कहानी भी है वह, कोई दिलकश प्रेमी का नूर भी

सपना है अहसास और साक्षी है वह कर्तव्य का

अत्यंत करीब है वह, कोई योजनों के पार भी

आसपास ही फिरती इच्छा भी है,

कोई परदे की उसपार की तृष्णा भी


एक आवाज है वह संगम की
,

कोई उठता शांत आगाज भी

अंदाज है वह उस नव-जीवन का,

कोई दिशा से जागता पुनरुत्थान भी

कोलाहल है वह चकित संयम का,

कोई अंतर का भूचाल भी


अयाचित ममता की तस्वीर है वह,

कोई करुणा की आराधना भी…

सौंदर्य नगर है भावनाओं की वह,

कोई तृप्त आनंद की दास्तान भी…

ज्योत्सना की शीतल आधार है वह

कोई मौज की कल-कल धारा भी…


विशाल है तनमयता उसकी,

कोई पंक्षी की चहकती मुस्कराहट भी…

आध्यात्मिक उन्नति का विकास है वह,

कोई अलौकिक ज्ञान और श्रृंगार भी…

मेरा आत्मानुसंधान भी है वह,

कोई लक्ष्य की संभाव्यता भी…


कुछ पलकों को भींचकर फिर देखता हूँ आवरण मैं

मेरी आत्मस्थित अभिलाषा है वह,

कोई स्नेह-सिक्त आश्रय भी…।

4:49 PM
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4:49 PM

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Saathi



Saathi

सोंच रहा था...!!!
जब कभी सपनों में कल्पनाएँ...
चित्त को उद्वग्न कर जाएँगी, आयेगी
फिर 'वही' निशा पहर में......
सपनो की मनोरम बारात सजाएगी,
पंकज किशोर की वह अभिलाषा
साथी मेरा संगती भरी वह जिज्ञासा...!!
क्षण-क्षण नये तेवरों से और, कितना रुलाओगी,
दौड़ जाती हो इन हथेलियों को छोड़
कोसों दूर अम्बर में...और बर्षों तक नहीं आती
मेरे खिले प्रसून की गोद में...
दूर बहुत तो मैं देख नही सकता
अपनी चंचल-उत्सुक निगाहों से,
दूरस्थ मंजिल तक पहुँच नहीं सकता
इन लड़खड़ाते पैरों से......
नूपुरों की नटखट धुनों में बांध
हमेशा कितना...सताती हो...
वहाँ हरीतिमा की सुंदर सेज़ में..,
वहाँ गुलशन के आयतों में...
कहीं कोई और श्रृंगार पाती हो...!!!
जो क्षण भर में मेरे अद्योपांत पगडंडियों से
बाहर दौड़े...चली जाती हो...।
बीत चुके कई हजार लम्हें
कई रातें भी पुन: जाग गईं...,
खिलते -मुरझाते पंखुड़ियों का रोज
सवेरा और मातम आता-जाता है,
अक्लांत हृदय में दारुणता तन्हइयों की
सुध दे जाता है......
नीहारता हूँ अपने रुंधे आच्छादित मन में
कहीं...तेरी वहाँ कुछ लय हो,
ढूंढता हूँ...!! सर्वोविस्तारित वन तक
कहीं वहाँ तेरी भींनी खुशबु का कोई आश्रय हो,
पर नहीं मिली तू मुझे इन यौवनॉ में
अकेला ही खड़ा था...सफर की राह पर
अपनी मौजो में तेरा रुप तेरे अहसास का पल लिये
मगर नसीम की रुसवाईयों में वह भी बह गया
तकता-तकता राह मैं तेरी निराशा से भींग गया,
कड़वटें बदल-बदल कर बीतें हैं कई फसानें
समझता रहता तू...है मेरे इसी सिरहाने,
चूमा भी कई बार हथेलियों को तुझे पाकर
लेकिन...मेरा यह आदर्श...!!!
चेहरा वहाँ उभरता ही नहीं था कोई प्रस्ताव लेकर
यह थी इनायत मुझपर मेरे बेबाक अनुराग पर
चाहा...कई बार उकेर दूँ तुझे चेतना पट पर
मगर इंतजार का यह मदहोश आलम छोड़ता कब था
अचेतन पड़ा था वह जो व्यंग-हाले में...
सरकता सा मैं जाम हर हाथों में टूट रहा था...
लेकिन तुझे पाने की चाहत में मैखाने का
इतिहास नहीं बना था......
मेरी समझ की भी क्या गाथा-सार है
उच्चतम नियमों का उदगार है...
संस्कारों में लिपटी मेरी हृदयतार है...
सिद्धातों में उलझी मानसिकता,यही मेरा अंधकार है ।

3:35 PM
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3:35 PM

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मिली है चांदनी मुझे...



मिली है चांदनी मुझे...
चांद मेरा छुप गया था वहीं...! कायनात के अब्र में
जहाँ सो जाती है मुक्कदर अक्सर...ख्वाहिशे रखकर,
विखर गया था रंग मौसम के प्रच्छद-पट पर
मिली थी मासूम...तन्हा...जिन्दगी विराने चाहत में,
गुलों में राख की फैली हुई कई और लकीरें थी---
बहारें निर्जर होकर मुझसे उपहास कर रहीं थीं...,
निःशब्द...थी आशाएँ, स्खलित हुआ था यौवन
ज्योत्स्ना त्राण मांगती रही, सिमट के अंधकार में,
डूबा जाता था...मेरा प्राण, बदहवास सागर में...
कहीं तो गंगोत्री की मिले शीतलता, पिपासा थी...मन में,
नयनों से निकलता सलील झर-झर बहता... जाता था
किसे तलाशता था हृदय... यही वह याद दिलाता था,
पैदल-था, थका हुआ... बोझिल था अपने-आप पर
किंक-कर्तव्यविमूढ़ मेरी अराधना, स्तब्ध था...यह चरित महान;
शहादत हुई थी 'होली' में और मातम थी 'दिपावली' पर
प्रार्थना की लौ... या रुहानी आत्मबल के साथ
खड़ा था कितनी रातों तक दिलासा देता हुआ मन को,
खिला है-- आज मेरा चांद, मेरी हथेलियों पर से
नैराश्य-चित का वातायन विह्वल हुआ है, क्षण-भर में...
बस सुनता ही जा रहा था उसकी आहटें, अनेकों दृष्टांत पुराने
निरीह-मन का भावानुभाव...! आंतरीक रुदन से
भर गया... स्मयमान क्षण भावनाओं के जल से,
अधीर मेरे नयन और अधीर थी उठती आहें--
सवेरा हुआ था वर्षों...बाद मेरे घर-आंगन में,
मालूम था मुझको...वक्त कहीं ठहर गया है...
जागी थी मेरी किस्मत... इतने करीब से,
भरी है चांदनी जबतक...अमावस के गहरे अंजन पर
छेड़ दूं संगीत नया इस अनोखे से जागरण में... ।
3:16 PM
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3:16 PM

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