
सुंदर जगत ये सुंदर आवरण
अद्भुत प्रकृति पर दिवस का आगमन
किस ओर नहीं …हर ओर मौज है
चातुर्दिक प्रेम दिव्य संगीत की लय है…
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विपदा का एक ऐसा मंजर भी आता है
तराशी हुई दुनियाँ में भी एक ज्वाला फूट पड़ती है
नभ धू-धू करता हुआ उपवन हीं सारा जलता है,
सुंदर मानव मूर्ति इतिहास बनता जाता है…
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देख समर! गरज रहा था सागर जब
वो नभमंडल भी बरसा था
रक्त में सनी थी मेदनी
शिलाएँ छिंटों से आवृत हुईं
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शंकर तेरी आपदाओं में क्या
विपदा की अग्नि भड़केगी
मृत्यु की आगोश में क्या
तेरी यह दुनियाँ तड़पेगी
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नितांत प्यासे से लाचारों का
भूखों का और आशाओं का
फटती हुईं अबलाओं की छाती
विलखते क्रंदित उनके बच्चों की आकृति
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थकी विपन्न बूढ़ी झर-झर आँखें
झुर्रियों पर भी तनी हैं भौंएँ
समता पर विषमताओं की लहरें
भीषणता पर प्रतिकार करती दिशाऍ
रक्तों को उद्वेलित करती लीलाएँ
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उजड़ गया यह उपवन सोना
मात्र पत्थरों पर टूटी पड़ी
हुई सांसों की अस्थियाँ हैं.......
किसकी भावनाओं में स्थित
डूबी नजरे.......बह गईं... छोड़कर
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ऐसे, हर जन्मों का न्याय विखड़ता है
हर साल लाखों घर लूटता है।
तेरी चरणों में श्रृंगार यह आभूषण कैसा
अपने ही पुत्र- पुत्रियों का यह मातम कैसा
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कैसे नहीं तू तड़पता है, कैसे नहीं तू रोता है
ऐसी विनाश लीलाओं के दर्द में
कैसे नहीं तू विफड़ता है......
तीसरी आँख का यह कैसा ढंड विधान है
जो बरसते हैं तेरी अंशों पर हीं,
गिर पड़ते हैं तेरी भावनाओं की
मर्म हथेलियों पर हीं.......
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आकर देख …जरा इस सृष्टि को
और इस सुंदर मानव को,
तू भी तो एक पापी हुआ न
हजारों नयनों में आँसू भर कर
तू भी तो शापित हीं हुआ न
अब तू भी चैन कहाँ पाएगा,
शंकर क्या तू इनके दुःखों को सह पाएगा
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ये नर और नारी ……
गरिमा प्रदत्त तेरी हीं… आँखें हैं
सुंदर-सुंदर रचनाओं की यह
सर्वोत्तम प्रतीकात्मक आहें हैं
फिर, क्यों अपनी हीं तस्वीर को फाड़ना चाहते हो
अपनी हीं अंगों को बारंबार काटना चाहते हो
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छोड़ दिया है... उस रण में
जिसमें लड़ना भी है और अंततः
तुम्हारे रथ- चक्कों के बीच में
दबकर मर जाना भी है...
जीतना हीं सिर्फ तुझे है और
हारना ही हम सबका धर्म है
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गंगा की धाराओं में तैरती लाशें बनकर
गिद्ध- कौवों का आहार बनकर या
समाचार पत्रों में शब्दों की सुंदर शैलियॉ बनकर
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बिखर गया हूँ आज इन हरी वादियों में
उस ऊँची मीनार पर और
रुठती - तपती शिलाखंड पर
छूट गया अब तेरी मर्यादा का सम्मान
रुठ गया अब तेरी करुणा का गान
बस अब तेरी पूजा हीं बची है...
श्रद्धा का मोल तो बीक चुका
भक्ति का संग तो छूट चुका।
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"अब कैसे हो तेरी अराधना
अब कैसे हो तेरी भंगिमा
बता ऐ भगवान तू हीं
अब कैसे हो तेरी प्रार्थना...।"
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