किसकी तन्हाई……?


किसकी तन्हाई......?
किसकी आँखों में रुठती हुई संध्या की गान है,
किसकी कदमों में ढलती हुई निशा की आहट हैं,

किसके दामन में बचा हुआ सुखद एहसास है,
किसके ख्यालों में मेरी स्थूल कहानी की सांस है.

किसकी बातों में कशिश भरी रेशमी नजाकत हैं,
किसकी सतसंग संचेतना में मैं विभोर हो रहा हूँ,

किसके व्याकरणिक धारणाओं में मेरा सांसारिक अध्यास है,
किसके साध्य अस्तित्व में मेरे प्राणों का आनंद है,

किसकी आदतें मुझे अपने से बेखबर करा जाती है,
किसकी कहानियों की डोर कुछ याद दिलाती हैं,

किसके आँचल में बैठकर मैं पल-पल जाग रहा हूँ,
किसके सुंदरतम आलिंगनों में मदहोश हुआ जा रहा हूँ.

किसकी बादियों के हरे प्रांगन में संसार बसा है,
किसकी कोमलतम श्रृंगार के समक्ष प्रभात हँसा है,

किसके द्बारा दिये गये धरोहर को मैं संभाल कर रखता हूँ,
किसके इंतजार में,मैं आज-भी कुँवारा बैठा हूँ.

किसकी चेतना से मैं जीवन ज्योत कर रहा हूँ,
किसकी एक कसक से पूर्णिमा का चांद लिये बैठा हूँ,

किसके समक्ष मेरी मुस्कुराहटें प्राण वर्धक हो उठती हैं,
किसके अद्यतन केशों से गहरी अंधकार व्याप्त हो जाती है.

किसकी स्पृहात्मक अंगों का अदृश्य स्पर्श लेता हूँ,
किसकी करुण बंधनों का अमीत-रस पी लेता हूँ,

किसके विराग में अपने-आप को रुग्न किये बैठा हूँ,
किसके जीवन का आज भूत लिखने बैठा हूँ,

किसकी याद से वीरान जिन्दगी खिल उठती हैं,
किसकी आहटों के सहारे हृदय हर-पल खो जाता है,

किसके समक्ष मौत भी बेखबर होकर सो जाती है,
किसके सम्मुख विष भी वरदानदायक हो उठती है.

"आज किसके लिए मैं जाग रहा हूँ
किसकी गोद में अपना सर रखकर
सोने की कोशिश कर रहा हूँ……
किस कोने में किसके पास, किसके लिए…
आज भी…!!!

समीर भाई के "उदय भारत" से प्रेरित हो कर यह पोस्ट मैं दुबारा
डाल रहा हूँ क्योंकि इससे पहले यह नारद पर नहीं आया था…

9 comments:

Udan Tashtari said...

बड़े सारे अनसुलझ प्रश्नों के माध्यम से गहरे भावों को बाँधा है, पूर्ण दार्शनिकता के साथ.

शब्दों की सहजता और सामनजस्य आकर्षित कर रहू है. बधाई और

गणतंत्र दिवस पर आपका हार्दिक अभिनन्दन.

राकेश खंडेलवाल said...

प्रश्न प्रश्न मेम उलझ उलझ कर
उत्तर स्वयं प्रश्न बन जाते
और दुपहरी में दिखते हैं
रजनी के साये गहराते
तब इक दीप जला कर देखो
मिल जायेंगे सारे उत्तर

Divine India said...

समीर भाई,
एक बार फिर धन्यवाद करता हूँ,ऐसे ही इनायत करते रहिए हमारा हौसला बढ़ता रहेगा…।

राकेश जी,
मैं प्रश्न तो कर ही नहीं रहा,
जब सवाल ही है मेरा जवाब ,
जो अधेरे में नहीं…एक साक्षी से है मैं
तो द्रष्टा बनकर भावनाओं में तैरने की कोशिश
कर रहा था…धन्यवाद जो पधारे पहली बार्…आपसे
और कुछ की कामना करता हूँ मैं…।

ePandit said...

आखिर में बता तो देते भाई कि कौन है वो ? ;)

रंजू भाटिया said...

किसके विराग में अपने-आप को रुग्न किये बैठा हूँ,किसके जीवन का आज भूत लिखने बैठा हूँ.

किसकी याद से वीरान जिन्दगी खिल उठती हैं,किसकी आहटों के सहारे हृदय हर-पल खो जाता है,

सच में ऐसे कई सवाल आज भी मन को विचलित कर जाते हैं ..अपने बहुत ही सुंदर शब्दो में सवाल
और जवाबो को बाँधा है ..शायद हम सब ही इन जवाब को तलाश कर रहे हैं !!

प्रेमलता पांडे said...

असीम-सत्ता!!!

Upasthit said...

Nihayat hi apni si rachanayen sabka sach ban jati hain...nihayat hi adhumukhi rachna bhi urdhvamukhi paayi jaati hai... badhayi ho aap safal rahe hain.

Unknown said...

कोई तो होगा नहीं तो यह खुशबू कैसी
यह आहट बिल्कुल उसके पायल जैसी
रूह की हर खिड़की बँद कर कर सोया था
फिर वह कौन थी जिसके दामन में सर रख कर रोया था…


पहले भी आना चाहती थी…पर आज ही आ सकी हूँ … बहुत अच्छा सँगीत है…ख्यालो के साथ साथ चलते हुए… थोडी देर ठहरने का मन करता है…

Unknown said...

कोई तो होगा नहीं तो यह खुशबू कैसी
यह आहट बिल्कुल उसके पायल जैसी
रूह की हर खिड़की बँद कर कर सोया था
फिर वह कौन थी जिसके दामन में सर रख कर रोया था…


पहले भी आना चाहती थी…पर आज ही आ सकी हूँ … बहुत अच्छा सँगीत है…ख्यालो के साथ साथ चलते हुए… थोडी देर ठहरने का मन करता है…