मिली है चांदनी मुझे...
चांद मेरा छुप गया था वहीं...! कायनात के अब्र में
जहाँ सो जाती है मुक्कदर अक्सर...ख्वाहिशे रखकर,
विखर गया था रंग मौसम के प्रच्छद-पट पर
मिली थी मासूम...तन्हा...जिन्दगी विराने चाहत में,
गुलों में राख की फैली हुई कई और लकीरें थी---
बहारें निर्जर होकर मुझसे उपहास कर रहीं थीं...,
निःशब्द...थी आशाएँ, स्खलित हुआ था यौवन
ज्योत्स्ना त्राण मांगती रही, सिमट के अंधकार में,
डूबा जाता था...मेरा प्राण, बदहवास सागर में...
कहीं तो गंगोत्री की मिले शीतलता, पिपासा थी...मन में,
नयनों से निकलता सलील झर-झर बहता... जाता था
किसे तलाशता था हृदय... यही वह याद दिलाता था,
पैदल-था, थका हुआ... बोझिल था अपने-आप पर
चांद मेरा छुप गया था वहीं...! कायनात के अब्र में
जहाँ सो जाती है मुक्कदर अक्सर...ख्वाहिशे रखकर,
विखर गया था रंग मौसम के प्रच्छद-पट पर
मिली थी मासूम...तन्हा...जिन्दगी विराने चाहत में,
गुलों में राख की फैली हुई कई और लकीरें थी---
बहारें निर्जर होकर मुझसे उपहास कर रहीं थीं...,
निःशब्द...थी आशाएँ, स्खलित हुआ था यौवन
ज्योत्स्ना त्राण मांगती रही, सिमट के अंधकार में,
डूबा जाता था...मेरा प्राण, बदहवास सागर में...
कहीं तो गंगोत्री की मिले शीतलता, पिपासा थी...मन में,
नयनों से निकलता सलील झर-झर बहता... जाता था
किसे तलाशता था हृदय... यही वह याद दिलाता था,
पैदल-था, थका हुआ... बोझिल था अपने-आप पर
किंक-कर्तव्यविमूढ़ मेरी अराधना, स्तब्ध था...यह चरित महान;
शहादत हुई थी 'होली' में और मातम थी 'दिपावली' पर
प्रार्थना की लौ... या रुहानी आत्मबल के साथ
खड़ा था कितनी रातों तक दिलासा देता हुआ मन को,
खिला है-- आज मेरा चांद, मेरी हथेलियों पर से
नैराश्य-चित का वातायन विह्वल हुआ है, क्षण-भर में...
बस सुनता ही जा रहा था उसकी आहटें, अनेकों दृष्टांत पुराने
निरीह-मन का भावानुभाव...! आंतरीक रुदन से
भर गया... स्मयमान क्षण भावनाओं के जल से,
अधीर मेरे नयन और अधीर थी उठती आहें--
सवेरा हुआ था वर्षों...बाद मेरे घर-आंगन में,
मालूम था मुझको...वक्त कहीं ठहर गया है...
जागी थी मेरी किस्मत... इतने करीब से,
भरी है चांदनी जबतक...अमावस के गहरे अंजन पर
छेड़ दूं संगीत नया इस अनोखे से जागरण में... ।
प्रार्थना की लौ... या रुहानी आत्मबल के साथ
खड़ा था कितनी रातों तक दिलासा देता हुआ मन को,
खिला है-- आज मेरा चांद, मेरी हथेलियों पर से
नैराश्य-चित का वातायन विह्वल हुआ है, क्षण-भर में...
बस सुनता ही जा रहा था उसकी आहटें, अनेकों दृष्टांत पुराने
निरीह-मन का भावानुभाव...! आंतरीक रुदन से
भर गया... स्मयमान क्षण भावनाओं के जल से,
अधीर मेरे नयन और अधीर थी उठती आहें--
सवेरा हुआ था वर्षों...बाद मेरे घर-आंगन में,
मालूम था मुझको...वक्त कहीं ठहर गया है...
जागी थी मेरी किस्मत... इतने करीब से,
भरी है चांदनी जबतक...अमावस के गहरे अंजन पर
छेड़ दूं संगीत नया इस अनोखे से जागरण में... ।
7 comments:
आपके pege पे आकर बहुत सुकून मिला, music बहुत अच्छा है..
आप लिखते रहें, हम पढते रहेंगे..
आपका बहुत-बहुत शुक्रिया..
राज गौरव..
bhatak gaya bhai bhatak hee gayaa...kavitaa ya jo bhee kuch hai ye, apni pakad se bahar kee cheej hai....
mahavir ji aapka bahut-2 dhanyawad.
hi divya. bahut achha likha tumne.. n flow of words marvelous.. n title too good.. urdu n hindi ka sangam.. must say goes well..par ek baat kahungi vedanaon aur adheerata ko itni achhi tarah vyakt kia to jis chaandani ki baat kar rahe ho vo itni madham kyun lagi, use itne kam shabad kyun diye?.. jab naya jaagaran aur nayi chaandani mili h to umeed karti hun aane wali rachanyen prakash se bhari hongi .. sangeet bhi bahega.. meri pasndida pankti jyoisana tran maangti rahi, simat ke andhkar me..
Thnx Manya,Tumne etne acche se meri Bhavana ko samjha,adhere me thi ek Hatasha aur Jab Chandani mili to mai likh nahi raha tha Likha jaa rahaa tha Bhawuk man aur kuch samajh nahi paa ra haa tha.
Thanku very much Raj 4 ur great compliment n support.
आपके ब्लॉग पर संगीत सच में बहुत सुंदर है... कैसे करा है आपने? ..बहुत सकून मिलता है ,और पढ़ना बहुत सुखद लगता है
रंजू
बहुत बहुत शुक्रिया ....एक नयी चीज़ आपसे सीखने को मिली ..पर हिंदी गाने बहुत ही काम है .....फिर भी बहुत अच्छी है..
शुक्रिया
रंजू
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