है वह अनगिनत सुरों की साधना
यहाँ से वहाँ…एक छोर से दूसरे तक
वादियों में बिछे शबनम की शीतलता
मेरे भागते जीवन की आश्ना…
किसी संध्या की शांत कहानी की भंगिमा
ज़ूस्तजू है या मेरी कल्पना की तृप्ति'का
कोई सोंच हो मेरी या मेरे अनुमानों की मूर्त मीमांसा…
कुछ तो होssss…नहींssss सबकुछ…!!!
अब तो यह आलम ही बदनसीब हुआ है जो
शब्द-चादर में समेटना चाहता है तेरी अंगराइयों को
मगर स्वयं तुम व्यक्त हो इशारों में कहीं भी…
सुनी थी सिसकियाँ तुम्हारी एकांत झुरमुट से
जहाँ गिरे थे वह मोती मेरे आग्रह में…
ज़ुबां खामोश…नमीं फैली है पलकों में…तड़पती सांसे
तेरी यादों के आगोश में घुटता ही रहता है…
शमां की पवित्र लाली में जलता जाता हूँ…तेरे लिए
कभी रुख़सत होता हूँ खुद से…तेरे लिए
बिखड़े हुए सपनों के पोरों को जोड़ता जाता
तन्हा राहगीर फिरता रहता…दर-ओ-दर
यही तो उलझन है जो हमेशा अपने से भटक जाता हूँ
अब तो जज्बात भी सो गये झील की गहरी गोद में
वही तो कुछ मिलन की यादें सहर हैं मेरे अनुरागी मन में
टपकते जाते मेरे सलिल फलक में समां
बरस जाते हैं तेरे यौवन पर…पैगाम देते हैं…
खड़ा हूँ मैं……
अभी-भी उसी राह पर…
जहाँ चांद पूरा खिला हुआ था…
अब्र पानी से भरा और धरा से मिलन चाहता था
आशियां सुबह की ताजगी के नेत्रों से पुलकित थी
ओsssssss मेरी दिलकश नाज़नीन…
इशारा है यह भी उसी तरह,
शमां भी अद्भुत है उसी तरह,
अब तो बसंत के बादल भी आ गये
बस मेरी इन बांहो को प्रतीक्षा है उसी तरह…॥
15 comments:
ओsssssss मेरी दिलकश नाज़नीन…
इशारा है यह भी उसी तरह,
शमां भी अद्भुत है उसी तरह,
अब तो बसंत के बादल भी आ गये
बस मेरी इन बांहो को प्रतीक्षा है उसी तरह…॥
---वाह भाई, क्या भाव उकेरे हैं, बहुत बधाई!!
वाह आर्यन जी बहुत अच्छे भाव उकेरे है रचना में..
अब तो जज्बात भी सो गये झील की गहरी गोद में
वही तो कुछ मिलन की यादें सहर हैं मेरे अनुरागी मन में
टपकते जाते मेरे सलिल फलक में समां
बरस जाते हैं तेरे यौवन पर…पैगाम देते हैं…
बहुत सुंदर भाव-पूर्ण रचना है,...बधाई
सुनीता(शानू)
बहुत सुन्दर भाव हैं ।बधाई।
दिव्याभ खो गयी मैं तो आपके लफ़्ज़ो में ..
किसी संध्या की शांत कहानी की भंगिमा ज़ूस्तजू है या मेरी कल्पना की तृप्ति'का कोई सोंच हो मेरी या मेरे अनुमानों की मूर्त मीमांसा…
आपकी तरह इतना गहरा नही लिख
सकती ..पर अपने सीधे से शब्दो में ...
प्रतीक्षा यह जन्मो की कोई कहानी बुन जाती है
एक अनजानी सी राहा जब अपने पास बुलाती है
झील सी जमी है ख़ामोश सी कोई सदा मेरी
अंतरघट की प्यास बस बढ़ती ही जाती है!!
ranju
शब्दों और भावों के पारखी है आप....बधाई
बहुत अछा लिखते हैं आप।
बहुत ख़ूब.
aapki kavitaon mein maine jo kuch khas dekha hai wo hai..uska waqt ke saath aur mukhar hona..jab-2 ise aur man se padhte hain ye aur jyaada spasth hoti jaati hai aur iske marm bhi jyaada prakhar dikhte hain.ye kavita us shreni ki sabse jyaada abhivyakt lekhni hai..khoob likhen aur khoob umda likhen .!
bahut sunder
बहुत सुन्दर कविता लिखी है आपने ।
घुघूती बासूती
कैसे हो मेरे मित्र.. देर के लिये माफ़ी चाहती हूं.. पर ये देर पढने में नहीं बस टिप्प्णी लिखने में हुई है..
एक बार फ़िर मुश्किल में हूं क्या लिखूं.. भाव्नाओं की गहराई.. शब्दों में साफ़ झलकती है..उर्दू और हिन्दी का संगम बहुत अनोखा है इस बार... मैं सच्मुच इन्हें शब्द चादर मेइं नहीं समेट सकती..
सबकुछ व्यक्त है .. और बहुत कुछ अव्यक्त भी..
अनन्य प्रेम की अनोखी अनुभूति... दिव्यता फ़ैली है ल्फ़्ज़ों में..उस अह्सास की..इंत्जार की.. जो आशावान है.. पुल्कित है.. भोर सा सुंदर.. अतिसुंदर.. पहली किरण सा.. ओस की बूंद सा..
अभूत्पूर्व...
you are the best!!! Kya kahoon i m speeechless...
समीर भाई,
आपको मेरी कृति पसंद आती है…शुक्रिया इसका और हाँ आपका यह संबल ही तो भाव को प्रवीण करता है…।
सानू,
धन्यवाद जो पुन: यहाँ आईं और अपने विचार व्यक्त किये…।
परमजीत,
बहुत-2 शुक्रिया आने का…।
रितेश भाई,
मैं तो बनाता हूँ कविता के पारखी तो आप हैं…शुक्रिया
अशोक जी,
मैं तो लिख ही रहा हूँ हाँ व्यस्तता के कारण समय नहीं दे पाता…आपका यहाँ आना और विचार रखना अच्छा लगा…।
रंजू जी,
लगता है मेरी लेखनी सफल हो गई…
मान्या,
तुमने इतना कुछ कह दिया तो कवि मन और कुछ नया लिखने को उत्सुक हुआ…।धन्यवाद!!!
प्रिय अनुज,
कोशिश है मेरी कि मैं कुछ नया दे पाऊँ…।
घुघूती बासूती जी,
आपका स्नेह हमेशा प्रेरित करता है…
Hello Rohit,
अगर मैं सही पहचान पा रहा हूँ तो!!!
बहुत अच्छा लगा जो तुम ने कुछ कहा मगर थोड़ा ज्यादा कह डाला… मैं समझता हूँ जो तुमने लिखा है वह सिर्फ तुम ही लिख सकते थे…।
दिव्याभ जी,
आप की रचना में राग है, अनुराग, इक अनबुझी प्यास है, बादल की फ़ुहार है, प्रतीक्षा रत प्यार है... और ज्यादा क्या मांग सकता है कोई.
सुन्दर है भाई
You are the Simply Mind Blowing......
Best Lines:-
शमां की पवित्र लाली में जलता जाता हूँ…तेरे लिए कभी रुख़सत होता हूँ खुद से…तेरे लिए बिखड़े हुए सपनों के पोरों को जोड़ता जाता तन्हा राहगीर फिरता रहता…दर-ओ-दर यही तो उलझन है जो हमेशा अपने से भटक जाता हूँ
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