खुशबू है 'वह' विभिन्न रंगों की…!!!



थोड़ा-थोड़ा साथ उसी का, सत्य भी है अखंड भी

मेरे अंगों की खुशबू, मेरा अहंकार है वह

अफसाना भी है वह, कोई तराना भी है

लेखक की कल्पना है वह,कोई कलम की रवानगी भी है


कहानी भी है वह, कोई दिलकश प्रेमी का नूर भी

सपना है अहसास और साक्षी है वह कर्तव्य का

अत्यंत करीब है वह, कोई योजनों के पार भी

आसपास ही फिरती इच्छा भी है,

कोई परदे की उसपार की तृष्णा भी


एक आवाज है वह संगम की
,

कोई उठता शांत आगाज भी

अंदाज है वह उस नव-जीवन का,

कोई दिशा से जागता पुनरुत्थान भी

कोलाहल है वह चकित संयम का,

कोई अंतर का भूचाल भी


अयाचित ममता की तस्वीर है वह,

कोई करुणा की आराधना भी…

सौंदर्य नगर है भावनाओं की वह,

कोई तृप्त आनंद की दास्तान भी…

ज्योत्सना की शीतल आधार है वह

कोई मौज की कल-कल धारा भी…


विशाल है तनमयता उसकी,

कोई पंक्षी की चहकती मुस्कराहट भी…

आध्यात्मिक उन्नति का विकास है वह,

कोई अलौकिक ज्ञान और श्रृंगार भी…

मेरा आत्मानुसंधान भी है वह,

कोई लक्ष्य की संभाव्यता भी…


कुछ पलकों को भींचकर फिर देखता हूँ आवरण मैं

मेरी आत्मस्थित अभिलाषा है वह,

कोई स्नेह-सिक्त आश्रय भी…।

20 comments:

Mohinder56 said...

आपने अपनी प्रेरणा, कल्पना, अभिलाषा की सुन्दर तस्वीर खींच दी अपने शब्दों के माध्यम से.....मगर यह न जान सका कि वह आप के करीब है कि आप उसे अभी तलाश रहे है

सुन्दर रचना.

Reetesh Gupta said...

विशाल है तनमयता उसकी,

कोई पंक्षी की चहकती मुस्कराहट भी…

आध्यात्मिक उन्नति का विकास है वह,

कोई अलौकिक ज्ञान और श्रृंगार भी…

मेरा आत्मानुसंधान भी है वह,

कोई लक्ष्य की संभाव्यता भी…


अच्छा लगा पढ़कर ...बधाई

राकेश खंडेलवाल said...

कहानी भी है वह, कोई दिलकश प्रेमी का नूर भी…

सपना है अहसास और साक्षी है वह कर्तव्य का

अत्यंत करीब है वह, कोई योजनों के पार भी

आसपास ही फिरती इच्छा भी है,

कोई परदे की उसपार की तृष्णा भी…
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बेहतरीन पंक्तियाम हैं

असमंजस के साये यों ही रह रह कचोटते हैं मानस
ऐसे ही लम्हों में अक्सर हम खुद से होते रहे दूर
मुट्ठी में लेकर सूरज को हम भटके हैं अंधियारों एं
और सोचते रहे कल्पना थकी बुझा है सभी नूर

david santos said...

You are Master! Thank you.

ghughutibasuti said...

सुन्दर !
घुघूती बासूती

Udan Tashtari said...

कुछ पलकों को भींचकर फिर देखता हूँ आवरण मैं

मेरी आत्मस्थित अभिलाषा है वह,

कोई स्नेह-सिक्त आश्रय भी…।


---हमेशा की तरह अति सुंदर. बहुत खूब, दिव्याभ भाई!!! इंतजार रहता है.

रंजू भाटिया said...

कोई अलौकिक ज्ञान और श्रृंगार भी… मेरा आत्मानुसंधान भी है वह, कोई लक्ष्य की संभाव्यता भी…
कुछ पलकों को भींचकर फिर देखता हूँ आवरण मैं मेरी आत्मस्थित अभिलाषा है वह, कोई स्नेह-सिक्त आश्रय भी…।

हमेशा की तरह यह रचना भी बहुत सुंदर है इसको पढ़ के बहुत सारी जिग्यसा दिल में जाग गयी
कौन है वो????:) और एक बात ..आप मेरा लिखा पढ़े के डर क्यूं गये:)??????? जी मेल पर आपसे बात हो सकती है कभी

सुनीता शानू said...

सपना है अहसास और साक्षी है वह कर्तव्य का अत्यंत करीब है वह, कोई योजनों के पार भी आसपास ही फिरती इच्छा भी है, कोई परदे की उसपार की तृष्णा भी…
बहुत बेहतरीन रचना है...कुछ पलकों को भींचकर फिर देखता हूँ आवरण मैं मेरी आत्मस्थित अभिलाषा है वह, कोई स्नेह-सिक्त आश्रय भी…।
क्या खूब हर पक्तिं अपने आप में बहुत सुन्दर है...
सुनीता(शानू)

सुनीता शानू said...
This comment has been removed by the author.
Sajeev said...

आसपास ही फिरती इच्छा भी है,

कोई परदे की उसपार की तृष्णा भी…

सुन्दर पंक्तियाँ है बहुत इसी मे पूरी कविता का सार भी है... वो जो दूर भी है करीब भी .... रास्ता भी है मंज़िल भी

Anonymous said...

wat sud i say?
evrytime i feel that this is the one which is ur best but u always surprise me with more beauty n depth..in all ur works i found smthing really touching which is true, pure n pavitr...
wonderful!!!

Monika (Manya) said...

शबद नहीं हैं मेरे पास इस रचना के सौंदर्य को मुर्त रूप देने के.... इतनी पवित्रता भावो मे.. इतनी मासूम.. मानो दुआ जैसी.. साथ ही सार्थक , गम्भीर , प्रेममयी, ... बस अब समझ जाओ की क्या कहना चाह्ती हुं.. पता नहीं कितनी बार पढी....

Anonymous said...

बहुत अच्छी अभिव्यक्ति है !!

Anonymous said...

DIVYABH SOMEONE VERY NEAR TO ME HAVE INSPIRED AGAIN TO READ AND WRITE,I WAS OUT OF TOUCH WITH LTERATURE FOR PRETTY LONG TIME AS I WAS NOT IN INDIA FOR LONG.CAME TO KNOW ABOUT U AND WHEN I READ ALL YOUR WRITINGS.I FEEL VERY CLOSE TO U.TUMHARI ABHIVYAKTI MAI MUJHEY HAMESHA APNEY JEEVAN KA PRATIRUP JHALAKTA HAI JAISEY MUJHEY SHABD MIL GAYEY HO.ATI SUNDER.LIKHTEY RAHO DIVYABH.MUJHEY APNA HI AKS MEHSUS HOTA HAI, BAHUT JEEVENT TUM LIKHTEY HO JO DIL KI GAHERAIYON KO CHHU JAT HAI.WE ALL HAVE SOMEONE IN LIFE WHOM V LOVE AND INSPIRED AND THEY MEAN VERY MUCH TO US.TUMHARI ABHIVYAKTI ITNI SAJEEV HAI KI MEREY SHABD HI KUM PER RHEY HAI KUCH KEHNEY KO.APNEE CHAAH KI ABHIVYAKTI KA ATI SUNDER ROOP.KEEP IT UP DIVYABH.GOD BLESS U.

Divine India said...

मोहिन्दर जी,
धन्यवाद आपके शब्दों के लिए…।

रितेश जी,
अच्छा लगा जो आप यहाँ आये ऐसे ही साथ देते रहे।

राकेश जी,
आपके शब्द ज्यादा सार्थक लग रहे हैं मुझे।

घुघूती जी,
धन्यवाद!!!

रचना जी,
काफी दिनों बाद आपको यहाँ देख कर अच्छा लगा!!!

Divine India said...

समीर भाई,
धन्यवाद जो आपको मेरी पंक्तियों की प्रतीक्षा रहती है।

रंजु जी,
आपके शब्द हमेशा ही मेरी कविता में कुछ नया रंग भरने को उकसाते रहते है…।

शानू,
आप यहाँ शायद पहली बार आईं है…धन्यवाद!!

Divine India said...

David Sir,
Thanku for ur kind word...!!!

Manya,
बहुत कुछ कह दिया…और शायद ज्यादा ही कहा…शुक्रिया…।

संजीव जी।
इतने गहरे ढंग से बहुत कम लोग लेते हैं कविताओं को…और शायद जो कुछ मैंने छिपाया हुआ था इसमें
उसे आपने उभार दिया…धन्यवाद!!!

मेरे अनुज,
थोड़ी कोशिश की है सत्य के पीछे की जिज्ञासा को प्रकट करने की…।

Rashmi Ji,
मुझे यह जानकर प्रसन्नता हुई की आपके हृदय का कोलाहल भी मेरे तारो की तरह ही झंझकृत होते है…
हाँ मुझे वैसे तो मेरे मित्र हमेशा सराहते है किंतु यह दुसरी बार है जब किसी ने इतने करीब से कहने की कोशिश की है…आपका बहुत-2 धन्यवाद!!!

david santos said...

Divine, if you to want to translate a work mine for INDU you send a Mail you stop: dadid_santos_sjm@hotmail.com if to translate still I publish these days, ok? Thank you

Anonymous said...

दिव्याभ, बहुत खूब

Manish Kumar said...

भाषा और भाव दोनों ही सुन्दर लगे !