नि:सम्बल "मन"



हर श्लोक में एक मंथन है
हर ओज सत्यं शिवं सुंदरम है,
आज का है यह विकट व्याख्यान
हर भेद में एक अभेद है
हर दृष्ट में कुछ अदृष्ट है;

वो समृद्धि छुप-छुप कर लुभा रही
मेरे चित्त-चितवन को अनंत अलंकारों से
क्या पास वो अपने बुला रही…या
संकेत है उसका निरझर पल;

क्या हो रहा है…इस दिवस में
क्या बीत चुका इस काल से आगे
मत कुरेद ओ मालिक मेरे…
हृदयाकाश को सब ठहर जाता है…
उसके ख़्वाबों में जिज्ञासा बनके…।

प्रयाण पाता या तलाश करता…पर
मन की विस्तार का क्या होगा
इस चिंतित स्वर और व्याकुल चित्त
पर कब और कहाँ हस्ताक्षर होगा

मत पूछ ऐ मन मेरे ठहर जा…
कौन है जो तुझे जो यहाँ पहचानेंगा,
इस काला-युग के अवशेषों पर तेरी
अकुलाहट को कहाँ त्राण मिल पाएगा,

एक हवा का झोंका चल पड़ता है
व्यार बनकर उड़ चलता है…
क्या पता इसे है…उन समयों का
जो साथ यह अपने ले उड़ता है,

हर सांत में एक अनंत छुपाकर
जीवन की डोर को मृत्यु तक ले जाकर
आती है नित्य नये-नये रहस्यों में
आशाएँ-अभिलाषाएँ लेकर…

विश्वास नहीं हो रहा है…इसबार
चली ले उड़ मेरे अनुरागी वृत को
संघर्ष की सूचना पर भी मैं
बैठा रहा स्तब्ध बनकर…

जब सबकुछ बंधा-बंधा सा था
सबकुछ सधा-सधा सा था…
फिर कैसी यह विपदा है आन पड़ी
पिंजरे के पीछे कैसी होगी अभिलाषा मेरी,

यह घनावरण कहाँ से आया
यह सन्नाटा कैसा है…कुछ नजर
यहाँ क्यों नहीं आ रहा…
यह अंधियारा यह आवरण कैसा है,

जाता कहाँ किस ओर किधर मन
सिमट रही बेख़ौफ जिंदगी नि:शब्द रुदन
के आईने मेंबिखरती हुई सांसों में,
आज भागना चाहता हूँ मन से…
लेकिन , सफर "समाप्त" हो चुका!!!

15 comments:

रंजू भाटिया said...

जब सबकुछ बंधा-बंधा सा था
सबकुछ सधा-सधा सा था…
फिर कैसी यह विपदा है आन पड़ी
पिंजरे के पीछे कैसी होगी अभिलाषा मेरी,

बहुत ख़ूब दिव्याभ .बहुत ही सुंदेर विचार से बँधा है आपने .शुक्रिया

सोमेश सक्सेना said...

दिव्याभ जी, बहुत सुंदर कविता है, मेरी बधाई स्वीकार करें |

Udan Tashtari said...

अच्छा शब्द चित्र खींचा है अपने मन के भावों का. बधाई.

ghughutibasuti said...

बहुत अच्छी कविता है । किन्तु काले पर लाल शब्द ! आँखों पर कुछ प्रहार सा कर रहे थे । खैर, मैंने सोचा कॉपी पेस्ट करके देखा जाए । और ज्यों ही इस प्रयत्न में चूहा घुमाया अक्षर स्वयं ही सफेद पर नीले हो गए ।
घुघूती बासूती
ghughutibasuti.blogspot.com

Reetesh Gupta said...

दिव्य भाई ....आपकी कवितायें अच्छी और बड़ी गहराई वाली होतीं हैं ।

मेरा सुझाव है कि आप अपने ब्लाग का background color and words color में बदलाव करके कोई लाइट रगं लगा कर देखें ।

Anonymous said...

संघर्ष की सूचना पर भी मैं, बैठा रहा स्तब्ध बनकर...
और
सिमट रही बैखौफ़ ज़िदगी निःशब्द रुदन के आईने में.. बिखरती हुई सांसों में
आज भागना चाहता हूं मन से,
पर सफ़र ,'समाप्त' हो चुका..

ये शब्द सब कह गये.. दिल के तारों को सच बता गये और यही सुनायेंगे मन की व्यथा को .. सब सुनेंगे भी।
"उठ मेरी जान मेरे साथ चलना है तुझे,
ये वक्त ये हालात बदलना है तुझे,
है रातें भी रोशन तुझसे सवेरा ही नहीं
रोशनी का आगाज़ करना है तुझे."
'समाप्त' नहीं 'आगाज़' है ये..

ePandit said...

मैं घुघूती जी से सहमत हूँ, सब से अच्छा तरीका होता है लाइट बैकग्राउंड पर डिफॉल्ट फ़ोरग्राउंड टैक्स्ट कलर तथा कुछ खास पँक्तियां हाइलाइट करने के लिए कलरड टैक्स्ट का प्रयोग।

परंतु आप की पिछली पोस्टों में टैक्स्ट कलर डार्क होने से लाइट बैकग्राउंड लेने पर वह ठीक नहीं दिखेगा। वैसे जो मैंने ट्राई किया था Minima - Blue उस में सबसे ठीक दिख रहा था। आप दोनों की तुलना करके देखना।

surjit singh said...

A very thought provoking write up.My good wishes.

http://gurushabad1.blogspot.com

Divine India said...

Hi Ranju,
Thnx 4 coming & appreciated!!

सोमेश भाई,
काफी अच्छा लगा आप यहाँ आये और मेरी रचना को सराहा…धन्यवाद!

समीर भाई,
आप तो हमेशा मेरा हौसला अफ़जाई करते हैं,ऐसे ही कृपा बनाये रहें धन्यवाद!

बसूती जी,
आप पहली बार आईं इसका शुक्रिया!!मुझे थोड़ा काला रंग ज्यादा ही पसंद है और कोई भी टेम्पलेट पसंद ही नहीं आ रहा…आगे से Colour Combination का ख्याल रखुंगा…

पंडित जी,
आपका कहना सही है पर मैंने देखा था करके मुझे वह background उदास लग रहा था…इसकारण हटा दिया…सुझाव का शुक्रिया!!

Hi Surjit,
Good to see u here...Thnx 4 coming & commenting...plz do come..!

Hi Manya,
Thnx a lot 4 ur deep thinking!

Divine India said...

Hello Ritesh Bhai,
अच्छा लगा आप्को अपने पृष्टिका पर देखकर्…आने का बहुत-2 शुक्रिया!!

Mohinder56 said...

आप के ब्लाग पर अपने ब्लाग का नाम देख कर गदगद हो गया I
आप की इस रचना मैं आज के युग के युवक की ह्र्दय व्यथा का सजीव चित्रण है एंव इसके लिये आप बधाई के पात्र हैं I सामाजिक एंव राजनीतिक ढांचे का आमूल चूल परिवर्तन ही इस समस्या का हल है
मोहिन्दर

Divine India said...

अरे यह तो दोस्त का कर्तव्य है…
बहुत-2 धन्यवाद्…हाँ बिल्कुल जरुरत है राजनैतिक ढांचे में बदलाव का…।

Anonymous said...

बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति!

Divine India said...

धन्यवाद रचना जी,,,!!

Anonymous said...

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