प्रतीक्षा
अनेकों गलियों के अनंत छोरों पर,
अनगिनत चौराहों के मुडेरों पर,
कभी आसमां के सितारों में,
कभी इतिहास के पन्नों की स्याही में
पागलों की भांति तुम्हें तलाशता, खोजता,
दर्पणों में निहारता तेरे अ-बोले तस्वीर
से अनेकानेकों दफा रु- व- रु होता
पर पता नहीं क्यों इसमें तेरी रुह की संजिदगी, तेरे धड़कते हुए हृदय की आहट भी महसूस
नहीं कर पाता। एक बात मिट जाने की, कुछ जरुरतें पूरी होने की, यह संपूर्ण जीवन लूटा देने
के लिये कब न था मैं... तम्हारे संग चलने के लिये, तुम्हारे अरमानों की कद्र करने के लिये,
तब क्यों तुमने अपनी समस्त अनुभूतियों को समेट लिया और मेरी तकदीर को शानदार
सी दुनियाँ के सुनसान विस्तृत रेगिस्तान के रंध्रों में पीसने के लिये छोड़ दिया।
सचमुच ! तुम वही हो जिसे सपनों में मैं निहारा करता हूँ और मुस्कान भरे ओंठो से...
शर्मीली रेशमी आवाज की कशीश से ढ़ेरों बातें किया करता था।
क्या तुम वही आनंदमयी दिव्य छाया नहीं हो जिसके
पास बैठकर मैं अपने दर्द को भूल जाया करता था, थकन से चूर अपने बदन को चेतना
से आबद्ध कर मधुरतम श्रृंगार के उन क्षणों से अपने भीतरी अंतस् की रुपरेखा को
हर्षोल्लसित करने से नहीं चूकता था। नहीं-नहीं शायद तुम वो नहीं जिसने कभी
मेरे इस आवरण को प्रेम के रस से तृप्त कर अपने आलिंगनों की प्रत्यक्ष भावनाओं से
कभी उभारा था, अपनी नर्म हथेलियों के सुंदर स्पर्शों से मेरे रूखे बालों को उन... तड़पते
हुए पलों से परिचय कराया था, जिसके निश्छल क्रियांवयन विशेषणों से मेरी लेखनी की
धारा कुछ रुक सी जाती है।
किस आस की डोर को पकड़ कर तेरे कदमों के आने की
उन पलों में प्रतीक्षा करुँ जो शा...यद मेरे निरीह आँसूओं के क्रंदन से रुग्ण हुआ जा रहा है।
किन आँखों से तुम्हारे जागृत प्रतिबिम्बों को और पास से देखने की हिम्मत करुँ जिसमें
मेरा धर्म, आदर्श, जीवन-सारांश, संगति, विरक्ति सभी मुझसे तुम्हारे यहाँ होने न होने की याद
तुम्हारे आने न आने की प्रतीक्षा को उद्वेलित करते रहते हैं। शायद... कहीं उस तस्वीर की
लकीर मिल जाए जिसपर मैं अपनी आध्यात्मिक उन्नति को लूटा सकूँ और अपनी
आवरगी को जाम दे सकूँ...।
"फरियाद कर रही है ये तरसी हुई निगाहें
किसी को देखे जमाना गुजर गया।"
किसी को देखे जमाना गुजर गया।"
6 comments:
अच्छा लगा आपका चिट्ठा
prayaas kaisaa hai? Nahi kah sakataa. Kyonki aapaki bbat bahut oopar se chali gayee, samajh se baahar rahee.
mahendra
i dont hv words to say but yes it really touched me deep inside..i read it twice in one breathe.. n really felt something in my heart..n the pic u selected it seemed not like the footprints on send but the foot print left by someone on path of heart...
मन को छूने वाला बहुत भावपूर्ण लेख है .
Mitr,
hirday bhav bibhor ho gaya aapka blog padhkar.
Keep it up.
Manish
Mitr,
hirday bhav bibhor ho gaya aapka blog padhkar.
Keep it up.
Manish
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