"प्रेम" पंथ है अटपटो……


"मैं" ने माना है…तुम चली गई हो दूर बहुत,
मेरी छाया से भी अलग, ख्वाबों के शरहदों के भी पार…
पर "हृदय" ने जाना है…उसमें रची-बसी हो तुम,
कहीं अंतरंग लय में भींगो रही हो तुम…

"मैं" ने माना है…दु:ख-विरह की उद्वेगावस्था हो तुम,
संताप की परमसीमा…एक मात्र इंतजार हो तुम…
पर "हृदय" ने जाना है…उसका अनुरागी श्रृंगार हो तुम,
प्रेम-उजाले में व्याप्त, जीने का आलिंगनबद्ध आधार हो तुम…

"मैं" ने माना है…खोई है हमने तन्हाइयों में सांसें,
क्षण-क्षण बहते शांति की मलहार, जीत का रोमांच…
पर "हृदय" ने जाना है…उसकी शीतल ज्योत्सना रूपी अलंकरण हो तुम,
रसमञजरी नीलकमल की सदृश्यता नयनों में ही वर्णित हो तुम…

"मैं" ने माना है…शोकपूर्ण स्थिर झील सी जल हो तुम,
भ्रमित उल्लास तीक्ष्ण ज्वाला, पीड़ा की शय्या हो तुम…
पर "हृदय" ने जाना है…मेरे प्राणों का आनंद,
चंचल अधरों की प्यास…मेरी 'प्रियतमा' हो तुम।

प्रीत है वह "मैं" की भी
और "हृदय" की भी रागनी है… पर
एक…सोंचता है "उसको"
दूसरा…जो "वही" हो जाता है…।

14 comments:

ghughutibasuti said...

बहुत सुन्दर ! बहुत दिन बाद आपकी कविता फिर से पढ़ने को मिली । लिखते रहिये ।
घुघूती बासूती

Anonymous said...

nice poetry after a long time

Udan Tashtari said...

हमेशा की तरह बेहद खूबसूरत रचना. ब्लॉग का नया रंगरुप पसंद आया. :)

Satyendra Prasad Srivastava said...

बहुत सुंदर और भावपूर्ण कविता

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

Divyabh,
Sunder shabd sanyojan ke sath , aapki prastut Kavita baot pasand aayee ...
RANG .. jahan jahan bhee aapne diye hain, unse , Kavita ki Marmikta aur bhee jyada badh gayee hai.
Angrezi mei Tippani ke liye kshama. :)
Ye BLOG + naya "Directors Eye " se ...badhiya lage.
Use bhee dekhne ka intezaar rahega.
Bahot neh ke sath,
Lavanya

रंजू भाटिया said...

प्रीत है वह "मैं" की भी
और "हृदय" की भी रागनी है… परएक…सोंचता है "उसको"
दूसरा…जो "वही" हो जाता है…।


इस बार मैं इस ख़ूबसूरत रचना को पढ़ने में लेट हो गयी ...:)
आज सुबह जब इसको पढ़ा तो लगा की आज का दिन शुभारंभ बहुत ही सुंदर
तरीक़े से हो गया ...पूरी रचना अपने में डुबो लेने वाली है पर यह अख़िरी पंक्तियाँ तो बहुत ही संपूर्ण और दिल में उतर गयी ..
इतनी सुंदर रचना के लिए बधाई... दिव्याभ

आशीष "अंशुमाली" said...

पर "हृदय" ने जाना है…उसका अनुरागी श्रृंगार हो तुम,
प्रेम-उजाले में व्याप्त, जीने का आलिंगनबद्ध आधार हो तुम…
बहुत ही सुन्‍दर रचना...
साथ ही..
रचना की परिणति अत्‍यन्‍त शान्‍त और शीतल है
प्रीत है वह "मैं" की भी
और "हृदय" की भी रागनी है… पर एक…सोंचता है "उसको"
दूसरा…जो "वही" हो जाता है…
बधाई स्‍वीकारें।

Anupama said...

"मैं" ने माना है…दु:ख-विरह की उद्वेगावस्था हो तुम,
संताप की परमसीमा…एक मात्र इंतजार हो तुम…
पर "हृदय" ने जाना है…उसका अनुरागी श्रृंगार हो तुम,
प्रेम-उजाले में व्याप्त, जीने का आलिंगनबद्ध आधार हो

"मैं" ने माना है…शोकपूर्ण स्थिर झील सी जल हो तुम,
भ्रमित उल्लास तीक्ष्ण ज्वाला, पीड़ा की शय्या हो तुम

And this is something i can relate to myself.....its awesome

प्रीत है वह "मैं" की भी
और "हृदय" की भी रागनी है… परएक…सोंचता है "उसको"
दूसरा…जो "वही" हो जाता है…।

Monika (Manya) said...

मित्र.. ये कविता मैने टिप्प्णी देने के पहले कई बार पढी है... कविता और उसके शब्द वाकई बहुत सुंदर हैं.. इसके लिये बधाई... पर इस बार कविता मुझे हमेशा की तरह छू नहीं पाई...मुझे भाव अपनी चरम-सीमा पर नहीं.. बल्कि बीच राह में खोये हुये लगे..हो सकता है मैं समझ नहीं पाई.. पर यही वजह है की मैंने टिप्प्णी देने में देर की.. पुनः पढकर मैंने कोशिश की समझने की.. पर हर बार ये अधूरापन ही मह्सूस हुआ..

Anonymous said...

wah-wah!!!
kya lay hai...kitni sejhta se apne dard or ummed ko shabd diye hain...jo kavita ke marm ko samjhe wo nih sandeh aapke vishay mein thoda aur jaan paayegaa...per sabse khoobsurat baat ye hai ki...ummed zinda hai..aur wo bhi dridhta ke saath...
maza aa gaya!!!

kousar said...

Divyab bhai,
Most of all i appreciate the new prodigious look of blog which vastly enhance its value. Now your blog's wings approach everybody far & wide.
Most beautiful bouquet of poetry where i grasp all colors & fragrance.
Listening sweet sentimental echo somewhere loud & so clear.
Full of deep emotions really im feeling lost myself in it....marvelous mingling of words.
Closely spot on the real magic mystery of love.
For getting true essence of this work one must be gauged with its heart not with its mind.
Good luck 4 up coming something more creative.

Divine India said...

घुघूती जी,
आपको भी काफी दिनों बाद देखकर अच्छा लगा… रचना को सराहने का शुक्रिया…।

रचना जी,
Thanku....

समीर भाई,
हमेशा मेरा मनोबल बढ़ाने का धन्यवाद!!!

सत्येंद्र जी,
मेरी रचना को इतने प्यार से पढ़ने का शुक्रिया…।

Divine India said...

आदरणीय मै'म,
आपका आना ही बहुत हो जाता है मेरे लिए…कोशिश की थी की ब्लाग ज्यादा अच्छा लगे…।

रंजू जी,
हाँ इसबार आप थोड़ा लेट हो गईं…पर इतने रू-व-रू हो कर भी पढ़ना बहुत होता है…।

आशीष जी,
मेरी कविता के मर्म को आपने गहराई से समझा है…तो एक लेखक की लेखनी सफल हुई…।

अनुपमा,
मुझे भी लगता है कि लोग ज्यादा अंतिम पंक्तियों की ओर ही मुखर हो रहे हैं… आने का धन्यवाद!!!

Divine India said...

मान्या,
मुझे तो अभी भी यही लगता है की मेरी Creativity का यह सार्थक उदाहरण है जो काफी दिनों बाद निकला है…मैं तो मात्र उपर के दो लाइन को ही लिखने वाला था जो अपने आप में इतना सत्य है कि बाकी जो भी पंक्तियाँ आई हैं वह तो मात्र उसी का प्रतिबिंब है…। मैं जो दिखाया है वह ऐसा अंतर्द्वद्व है जो सबके भीतर चलता है चाहे वह सत्य प्रेम हो या वासना मात्र हम स्वीकार नहीं करना चाहते क्योंकि सामने बाले को वही दिखाते हैं जो वह देखना चाहता है…।

प्रिय अनुज,
सच कह… इसे समझना बहुत आसान नहीं है क्योंकि स्वीकारोक्ति होना बहुत मुश्किल है…।तुमसे क्या कहा जाए हमेशा की तरह तुम्हारा समझना अलग होता है…।

KOUSAR,
Thanku for ur soooooo kInd word...
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