वहाँ भी सरक कर पत्तों से बूंदे
अनंत में घुल जाती हैं
यहाँ भी शब्द ह्रदय की गहराइयों
से टपक कर अनंत बन जाती है।
से टपक कर अनंत बन जाती है।
शुरू का बोध अगम्य निश्छल
कार्य कल्पना के पार नईया खेता
यहाँ भी नाचती अहसासों में
अबंध गीता की परिकल्पना।
कितने दिवस बीत गए उम्मीद-ए-आशाओं में
कई लालिमा प्रकृति में खिल कर मुरझा गईं
यादें अपने चरम पर "प्रियतम" को छू गईं
रास्ते बनते गयें और दिशाएं बदलती गईं
मगर याद रहा यहाँ की वो रूमानी छांव
मगर याद रहा यहाँ की वो रूमानी छांव
कुछ की नवीन, कुछ प्रेम, कुछ प्रांजल रचनाओं
की भावावस्था...भुले नहीं पाता था और पुनः इस
दश्तुर में मिलन करनें आ गया ,
एकबार फिर मेरा पदचिह्न उभर कर
औरों के साथ हो लिया ।
15 comments:
कितने दिवस बीत गए उम्मीद-ए-आशाओं में कई लालिमा प्रकृति में खिल कर मुरझा गईं यादें अपने चरम पर "प्रियतम" को छू गईं रास्ते बनते गयें और दिशाएं बदलती गईं
मगर याद रहा यहाँ की वो रूमानी छांव
hi divyabh kaise hain aap? bahut dino baad aapka likha ,aapka naam padha yahan bhi aur apne blog par bhi ....hamne har nayi rachna post karte hue aapk yaad kiya ....aapki yah lines bahut achhi aur sachi lagi ...shukriya aapka ..
दिव्यभाव जी,
आपका स्वागत है.. हम सब ने आप की बहुत कमी महसूस की... कैसे हैं आप ?
सुन्दर कविता लिखी है आपने...मुझे लग रहा है कि आपने अपने जाने और लौट के आने के भाव पर ही यह कविता लिखी है... हम आप के पदचिन्ह अपने लिये मार्गदर्शन की तरह समझते हैं..
मिलते रहेंगे
वाह, पुनः देखकर कर बड़ा अच्छा लगा. स्वागत है. अब सुनाईये कैसा रहा अब तक का सफर? :)
दिव्याभ कैसे हैं आप ?अचछा लगा फिर यहाँ देखकर..
"रास्ते बनते गयें और दिशाएं बदलती गईं
मगर याद रहा यहाँ की वो रूमानी छांव"
परिक्रमा अपनी ही दुरी पर अगर की है..
तभी दिशा हर पल बदल जाती है....
चरम पर "प्रियतम" को छू गईं रास्ते बनते गयें और दिशाएं बदलती गईं
मगर याद रहा यहाँ की वो रूमानी छांव
दिब्य भाई बहुत खूब ...बधाई
लगता है आपकी मुलाकात आपके प्रियतम से हो गई है. जानकर अच्छा लगा की आपको यहाँ की रूमानी छाँव याद आई
बहुत सुंदर भाव है।
Hi Divyabh welcome back.. really happy to see you again..
Again a god work of words n feelings... do alag anubhavon ke beech ki saamyata... har bhaav mein usi ek anant roop ki parikalpanaa.. har ehsaas mein usi priya ke darshan.. yahaan bhi aur vahaan bhi.. yaadein yaad nahi bani balki kheench le aayi punh usi raah mein.. jahaan auron ke saath hote huye bhi kadam apne alag pad-chinh chhod gaye....
thanx n regards
Manya
वहाँ भी सरक कर पत्तों से बूंदे
अनंत में घुल जाती हैं
यहाँ भी शब्द ह्रदय की गहराइयों
से टपक कर अनंत बन जाती है।
क्या बात कही है, बहुत अच्छे. welcome back :)
शानदार कविता के साथ वापसी, फिर से स्वागत है दिव्याभ भाई!
this wat the quality is!!!
because i know even the time taken in writing this i can say with full proud n respect that ppl sud read,understand n learn something from here...no jingling with same kind of words,expression n belief..
very true effort.
Welcome back to Bloggers world.As they say Entry with BANG and exit with BANG :).Best Lines:-
वहाँ भी सरक कर पत्तों से बूंदे अनंत में घुल जाती हैं
कितने दिवस बीत गए उम्मीद-ए-आशाओं में कई लालिमा प्रकृति में खिल कर मुरझा गईं यादें अपने चरम पर "प्रियतम" को छू गईं रास्ते बनते गयें और दिशाएं बदलती गईं
एकबार फिर मेरा पदचिह्न उभर कर औरों के साथ हो लिया
दिव्याभ जी आपका संदेश मिला, अच्छा लगा । आप मुंबई में ही हैं, अपने बारे में बतायें, कहां हैं क्या कर रहे हैं । आपकी ये कविता अदभुत है ।
ये ब्लॉग इसलिये शुरू किया गया है ताकि वो सब कुछ कहा और लिखा जा सके, जिसकी गुंजाईश रेडियो पर नहीं, समय और विषय की सीमाओं के कारण, बहरहाल अभी तो शकील बदायूंनी पर आधारित पहला लेख ही आया है, इसके बाद कई और कलाकारों पर काम करना है,
संपर्क बनाये रखें, अपना संपर्क सूत्र बतायें यूनुस
Thnx...all of you for great and encouraging words...!!!
"कुछ की नवीन, कुछ प्रेम, कुछ प्रांजल रचनाओं की भावावस्था...भुले नहीं पाता था और पुनः इस दश्तुर में मिलन करनें आ गया ,एकबार फिर मेरा पदचिह्न उभर कर औरों के साथ हो लिया"
shabd jagane ka kaam karte hai prerna dete hai shabdo ki duniya ke bashindo ko. aaj mai bhi aapke sath ho liya kuch ankai si, kuch bhulebisre pal liye is qatra qatra jindgimai...
आपा-धापी भागम-दौड़ी में गंध बिखरी है विनाश की
best line of the poem and thanks for being so regularl in reading my blog
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