महात्मा…Gandhi...।



हमारे परम पिता, गुरु एवं कर्णधार

कई मायनों में हमसे बिल्कुल समान

और थोड़े जुदा-जुदा भी। आज विश्व

अहिंसा दिन भी घोषित किया गया जो

इस महान पुरुष के लिए विश्व श्रद्धांजलि

है। भारत ही ऐसा देश है जहाँ इस महा-

पुरुष की सबसे ज्यादा आलोचना की गई

मगर वह आज भी अपनी प्रज्ञा से शोभित

है… आज जो कविता मैं प्रस्तुत करने जा

रहा हूँ, वह मेरे पूर्व लेख "महात्मा और सत्याग्रह" का ही विस्तृत

रुप है…चूंकि यह कविता "महात्मा" पर लिखी मेरी प्रिय कविता है, जो उस लेख में

छिप-सी गई थी…।

“जन्मा था हमारा भविष्य आज ही साधारण शरीरी ले

विश्वास समेटे नेत्रों में देखा दासत्व, युग का रे…

दर्शन जिनका काल से आगे…सत्य था पीछे उनके

टेक चला था राम रे…

नि:संग अहिंसा की कर्मठता का पाठ पढ़ाते अपने

उषा काल में…

जिसके निर्भीक पांव से पड़ा मलीन था छत्र ब्रिटिश

का राज रे…

भारत के क्षितिज पर बनकर पिता चंदा के जैसे चमकते

हैं बापू बनकर राम रे…

अनुनय-पूर्वक लड़ा संग्राम, उतार फेंका अपने चीवर को

मानवता के आदर्श में…

कई चेहरों में अद्भुत वह चेहरा बनकर उतरे थे

प्राणों में स्वाभिमान रे…

तस्वीर बनाई नये भारत की जीवंत किया उसे

विश्व-इतिहास में…

दिया अनूठा ज्ञान सत्याग्रह का विश्व को, ऐसे थे वह महात्मा.…

जिनकी दुनियाँ करती गान रे…

सभी आधारों का समन्वय कर दे दिया वतन आजाद

हमारे हाथ रे…

वे महान नहीं आदर्श ,गर्व- स्वाभिमान यही थी उनकी

पहचान रे…

वह मानव थे या महा-मानव, पर थे

भारत के लाल रे

पारितोषिक है यह स्वतंत्रता… जीते जा रहे… उल्लास इसकी

सुगंध दिशाओं में फैला है, ऐसा आश रे…

आओ याद करें उस पुण्य आत्मन को

शत-शत नमन आदर-प्रणाम के साथ रे…

कि विश्वास हो पर्वत के जैसा

जो ढकेले चक्रवात रे…

पूरा हो लक्ष्य हमारा बढ़े देशाभिमान रे…"

हे राम, हे राम, हे राम

15 comments:

Gyan Dutt Pandey said...

आज आपने यह कविता पढ़ाई. अच्छा लगा. धन्यवाद.
आज के दिन बापू को सादर नमन.

राकेश खंडेलवाल said...

दिव्याभ

बहुत सुंदर संयोजन किया है भावनापूर्ण.

Anonymous said...

दिव्याभ
excellent expressions and lets us today celebrate the victory of truth and non voilence and freedom .
Bapu came in this world to enlighten us

Udan Tashtari said...

बहुत बढ़िया दिव्याभ भाई. मन प्रसन्न हो गया.

महात्‍मा गांधी जी के जन्‍म दिवस पर शत शत नमन.

Reetesh Gupta said...

बहुत अच्छे दिव्याम भाई ...अच्छा लगा पढ़कर

Reetesh Gupta said...

भाई दिव्याम पिछ्ले साल २ अक्टूबर को मैंने एक कविता लिखी थी ....इसे भी देखें...धन्यवाद
http://bhavnaye.blogspot.com/2006/10/blog-post.html

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

बापू की शान मेँ लिखी ये कविता के सच्चे भाव ह्र्दय को छू गये -
बहुत बढिया !
स स्नेह,
-- लावण्या

रंजू भाटिया said...

मैं कुछ लेट हो गई कमेंट्स देने में :)
बहुत बहुत सुंदर लिखा है आपने दिव्याभ
बापू जी को यूं याद करना ही सच्ची याद है उनकी
बधाई आपको इतनी सुंदर रचना के लिए

Anita kumar said...

दिव्याभ जी, बहुत सुन्दर कविता लिखी है आप ने गांधी जी पर, चित्त प्रसन्न हो गया इसे पढ़ कर। आई तो थी आप का धन्यवाद करने कि आप मेरे चिट्ठे पर आये और आप को मेरी कविता अच्छी। आप का इ-मेल पता नहीं मिल रहा था इस लिए यहीं लिखने का मन बना लिया , क्या मालूम था कि यहाँ इतनी सुन्दर कविता भी पढ़ने को भी मिल जायेगी। कृप्या अपना इ-मेल पता भेजें

Anonymous said...

wah.kya geet hai..:)
dil ko chu lene wala hai.gandhi ji nihsandeh is ko dekh kar prassn honge..:)beautiful!!!

kousar said...

hi,
Remarkable tribute to the Gandgi g.
nice depiction with full of reverence but it can be better more...!

रवीन्द्र प्रभात said...

आपकी प्रस्तुति वेहद -वेहद प्रशंसनीय है. शब्द और बिंब में ग़ज़ब का तालमेल. बहुत सुंदर संयोजन,अच्छा लगा, धन्यवाद,वधाईयाँ .

चिराग जैन CHIRAG JAIN said...

apka blog dekh kar mann aalhaadit hua

srijansheel mastishkon ko ek manch par ekatrit karne ki utkanthaa hai, yadi aapka sahyog mil sakta ho to kripya sampark karein chirag2705@gmail.com

Anonymous said...

kisi ne mujhe bataya ki net pe aapka likha padhun...aapki abhivyakti aur shabd vinyas adbhut hain aur aap aam aamon mein hapus aam hain..:)
nihsandeh aapke kai lekhon ko padhne aur samjhne ke baad mujhe aisa pratit hua ki aapki lekhni mein vyavastha hai..chirantan bhav hain utkrisht shabd sanyojan hai aor aapka vikas ek darshanik kavi ke rup mein hua hai...jyaada kehna yahan thoda atpatta lage per nischit rup se aap apni lekhni pe dhyaan dein..bhaviyasya aapka uzzawal hai..
dhanyawad
prayag bhargav

सुनीता शानू said...

बहुत समय से टिप्पणीयाँ नही दे पा रही थी...सुन्दर कविता है दिव्याभ और गुलाब तो बेहद खूबसूरत लग रहा है...आप कहें तो मै इसे अपने ब्लोग के लिये चुरा लूँ...:)

सुनीता(शानू)