प्रेम पंथ है…आत्म प्रतीति।
पता नहीं मुझे इस जिंदगी के और कितने मायने हैं…
समझ नहीं आता कौन दु:ख के, कौन सुख के हैं…
सभी को साथ लेकर परखना……? संभव नहीं,
वक्त निकलता जाता है, कई उलझे मोड़ छोड़ देता है
मदिले संरचना में इसके फिर देवदास चला आता है
अपने को भींगाकर रस में पतला सा दर्द फैला जाता है
तन्हाई है…इंतजार भी…प्रतीक्षा है अपने-आप की
तलाश लेकिन करता है मन… दूर रह रहे साथी की
एकांत मन जो मानता ही…नहीं!!!
जाकर ले आ उसे… अब छोड़ भी यह मायूस बिस्तर
भाग उधर…चल दौड़ भी जा… खो न जाये यह सुहाना मंजर
साथ है जबतक साथी का अम्बर सौरभ बरसाता है
मूल रुप में प्रकृति विकास क्रीड़ा में रम जाती है…
सभ्यता का पथ रुककर थोड़ी देर…
संस्कार देवी से पूछेगा…वो कौन दिव्य संगत में है
किसकी यह रचना होगी…
विस्तार सत्य का मनन हृदय में… कोलाहल संयत वातावरण होगा
जटिल भावना… लम्बी उदासीनता में भी
चाँद नयनों में खिला होगा…
आगोश में लिपट कर दिवा-रात्री
सपनों के सुमधुर गीत… पागल शमा…
घायल कामना का अंतरंग प्रीत...
आशाओं के चादर में लिपटा वह सिकुड़ा मेरा प्रेम।
सात्विक कर्म मुझसे अलग होने की, आज आज्ञा मांगता है
फिर से नये मदिरालय को नया दास दे जाता है…
खुद से अलग होकर उसमें…खुद को ही ओझल कर दूं
सौ बार डूबना हो फिर तो क्या, संग्राम सार्थक कर दूं
आनंद ढूँढने निकला था कोसो दूर गगन में
आज मगन हूँ अपने ही इस नीले शांत मन में…।
20 comments:
क्या कहां कब कौन किसने किसलिये क्यों
प्रश्न तो उठते रहे हैं हर घड़ी पर बिन उठाये
आस दीपक बालते जिस रोज पल भर को थकेगी
ज़िन्दगी ही तब उठे हर प्रश्न का उत्तर बनेगी
madhurima bikherti prem-samvedna ;bahut sundar
waah!!!! ... padhkar hi kah sakti hun ki tumne likhi hai... kaafi dino nahi balki mahino baad aayi hun... aur dhaar bilkul barkaraar hai.. aur tumhari classes.. shooting wagerah ?????? i am all well..... jus busy enough to come online... but trying to come back n write... achha laga bahut din baad yahan aakar aur tumhaara comment dekh kar.. shukriya mere lekhak - mitr...
आप दिखें..आप लिखें...बस, मन आनन्द में डूब गया..इतना लम्बा गायब होना ठीक नहीं..अप्रेल २१ से बम्बई में हूँ ४ दिन कनाडा जाने के पहले...कैसे मुलाकात हो??
swet, nirmal, chanchal mann laga huwa hai khoj mein, us path ka wah banna chahta hai sarthi us rath mein, kya huwa jo mann vichlit huwa , kya huwa sab tham..sa gaya ,
par weg hai us darpan mein jiska sarthi bhigta us nayan mein, samay hai aapka parth, prit hai aapki saath. bechen dil bas beh jane de us shital ujwal dhara ko apne aaghosh mein. mein ki teri paribhasha hi kafi hai tumhe sambhalne ke liye .
आज आपकी टिपण्णी अपनी पोस्ट पर देखी। और फ़िर आज ब्लोग्वानी मे आपकी पोस्ट बड़े दिनों बाद देखी।
बहुत ही उम्दा रचना।
bahut achha likha hai....
बहुत दिनों के बाद आपकी अभिव्यक्ति से रू-ब-रू हुआ , अच्छा लगा ...क्रम बनाए रखें !
bahot khoobsoorat hai sir...sath hi mera hosla badhane ke liye thanks
पता नहीं मुझे इस जिंदगी के और कितने मायने हैं…
समझ नहीं आता कौन दु:ख के, कौन सुख के हैं....
क्या अंदाज है लिखने का,वाह!
दीव्याभा ,
भाव गहराते हुए, प्रेम शब्द का पर्याय से बन गए हैं ...सद आशिष ...आपकी प्रतिभा के लिए , उन्नति के लिए ..
स्नेह,-लावण्या
कल ही मैंने एक पुरानी नवनीत पत्रिका में "शब्द और संस्कॄति" पर यश मालवीय जी का लेख पढ़ा था। उसकी दो लाइने यहाँ लिखने का मन कर रहा है ।
"शब्द से आखेट करना जानते हो
नहीं ! तो कु़छ भी नहीं समझा सकूंगा मैं तुम्हें
युद्ध अपने से कभी क्या ठानते हो
नहीं ! तो कु़छ भी नहीं समझा सकूंगा मैं तुम्हें"
इसी लेख में उन्होंने उमाकांत मालवीय की कविता की दो लाइने भी लिखीं
"कोई एक शब्द तो मिले
रचना पर रख दूं तुलसीदल-सा
रचना की रचना नैवेद्य बने"
दिव्याम भाई बहुत अच्छा लगा...बहुत सुंदर कविता...आपकी कविता पढ़कर ना जाने क्यूं इसे यहाँ लिखने का मन हुआ । बधाई
बात कहने का ढ़ग काफ़ी अच्छा है!
impeccable!
after so long u tried ur pen to write this absolutely brilliant work of poem...ur scripts r phenomenal...but u hv not lost the silken touch of poetry...
i m glad that u belong to me n the constant source of inspiration...
too goood!
baht barhiya ..
इतना दर्द?
pahli baar aapke blog me aai hu .aapki rachnaye padhkar bahut accha laga.me bhi ek blo likhne ki kosis kar rahi hu jarur dekhe.
pahli baar aapke blog me aai hu .aapki rachnaye padhkar bahut accha laga.me bhi ek blog likhne ki kosis kar rahi hu jarur dekhe.
बहुत ही उम्दा रचना है। बधाई स्वीकारें।
cuold you please contact me at
navrahi@yahoo.com
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