आशा का नभ है विशाल…।

जाने कितनी ही सुबह बीत गई रात
को तकने के बहाने पर याद रहा
मेरा यही साथी जो साथ चला था
तन्हाइयों में उस वक्त…
अपने फिल्म को लेकर इतना व्यस्त
हो गया हूँ कि कब रात आती है
और चली जाती है पता ही नहीं चलता।
वैसे मेरी फिल्म का Promo
सीरिफोर्ट ऑडिटोरियम में 20 मई को
दिखलाया गया था जिसमें दिल्ली की
मुख्यमंत्री ने भी शिरकत ली थी…
कुछ तकनीकी पक्ष का काम बचा है
सो उसी को पूरा करने में लगा हूँ।
आज बहुत दिनों बाद आप सब से
कुछ कहने का दिल हुआ तो आशा
(Hope) को साथ ले आया…।



स्वयं के अंतस में अपने को गहरे उतार कर देखो,
वहाँ अंजन की काली रेखा में भी आंनद घटित होता
ही होगा…

जाग हो जाये अगर जाग से ज्यादा,
वहाँ स्वप्नों के आंगन में भविष्य सार्थक होता
ही होगा…

स्वतंत्र हो कर निर्भीक नये आवरण में झांक कर देखो
वहाँ पार सीमाओं के परम विराट जागरित होता
ही होगा…

बाहर निकल कर सघन अंधकार से आसमान में देखो,
वहाँ आशा के नभ-मंडल में उल्लास योग का संगम होता
ही होगा…

"मात्र सुख की आशा में कहाँ जीवन का हर्ष बहता है,
वह तो सत्य प्रवाह है… जो अनंत गहरे में भीतर ही भीतर
इठलाता है…।"

13 comments:

रंजू भाटिया said...

बाहर निकल कर सघन अंधकार से आसमान में देखो,
वहाँ आशा के नभ-मंडल में उल्लास योग का संगम होता
ही होगा…

इतने दिनों बाद आपका लिखा पढ़ना निश्चय ही बहुत सुखद लग रहा है ..हमेशा की तरह सुन्दर है यह .आपको बधाई और वहां न पाने के लिए माफ़ी चाहती हूँ उस दिन बारिश ने बहुत परेशान किया :(अफ़सोस रहेगा न मिल पाने का आपसे ..लिखते रहा करे अच्छा लगता है आपका लिखा पढ़ना

vipinkizindagi said...

सुन्दर है

डॉ .अनुराग said...

वाकई बहुत दिनों बाद आपको यहाँ देखा......बेहद खूबसूरत कविता है.....कभी कभी अपने आप को उलीचना भी थकान मिटाने जैसा होता है....

Udan Tashtari said...

आप सार्थक कार्य हेतु यहाँ से गायब हैं अतः कोई शिकायत नहीं मगर इतना बेहतरीन पढने का इन्तजार हमेशा रहता है. शुभकामना.

Gyan Dutt Pandey said...

सफलता की बधाई और शुभकामनायें मित्र। यह कविता प्रेरक लगी।

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

मात्र सुख की आशा में कहाँ जीवन का हर्ष बहता है,
वह तो सत्य प्रवाह है… जो अनंत गहरे में भीतर ही भीतर
इठलाता है…।"

बडे दिनोँ बाद आपको पढा और फिर वही प्रेरणापूर्ण भाव मिले -
आपकी फिल्म देखने का मन है - बहुत बधाईयाँ और स्नेह,
- लावण्या

ghughutibasuti said...

बहुत समय बाद आप दिखे, स्वागत है। अच्छा लगा। आपकी रचना पढ़ी। वही पहले सा सुन्दर लेखन! आपकी फिल्म की सफलता के लिए शुभकामनाएँ।
घुघूती बासूती

Reetesh Gupta said...

बाहर निकल कर सघन अंधकार से आसमान में देखो,
वहाँ आशा के नभ-मंडल में उल्लास योग का संगम होता
ही होगा…

दिब्याम भाई....बहुत सुंदर..आपकी फ़िल्म के लिये शुभकामनायें

Anonymous said...

sorry to be so late in commenting,it is one of those poems which takes you to the level of deep introspection..i simply loved it for the kind of simplicity it contains yet without loosing it's force!

Monika (Manya) said...

sabse pahle to kaise ho mere 'lekhak-mitr'...
well bahut dinoi baad aan hua hai... aur dekh rhai hun.... nirbaadh prawaah jaari hai.. pahle ki tarah shabdon ka bhaaown ka ,... darshan ko.......

sachmuch aas ka deep jal utha hai kahin......
padh kar fresh ho gayi.........shukriya........

Anonymous said...

स्वयं के अंतस में अपने को गहरे उतार कर देखो,
वहाँ अंजन की काली रेखा में भी आंनद घटित होता
ही होगा…

जाग हो जाये अगर जाग से ज्यादा,
वहाँ स्वप्नों के आंगन में भविष्य सार्थक होता
ही होगा…

स्वतंत्र हो कर निर्भीक नये आवरण में झांक कर देखो
वहाँ पार सीमाओं के परम विराट जागरित होता
ही होगा…

बाहर निकल कर सघन अंधकार से आसमान में देखो,
वहाँ आशा के नभ-मंडल में उल्लास योग का संगम होता
ही होगा…

"मात्र सुख की आशा में कहाँ जीवन का हर्ष बहता है,
वह तो सत्य प्रवाह है… जो अनंत गहरे में भीतर ही भीतर
इठलाता है…।"

koi ek line nahi likh sakti puri kavita hi anupam hai...

Your poems have touch of divinity----Anupama

रजनी भार्गव said...

बहुत सुन्दर रचना है। शुभकामनाओं सहित,

shelley said...

स्वयं के अंतस में अपने को गहरे उतार कर देखो,
वहाँ अंजन की काली रेखा में भी आंनद घटित होता
ही होगा…

sach hi kaha aapne. par apne antraman me dekhte hi kitne log hain, yahi bidambana hai.