माँ तू कहाँ हैं...?
चार कौए उर्फ़ चार हौए
उन्होंने यह तय किया कि सारे उड़ने वाले
उनके ढंग से उड़ें, रुकें, खाएँ और गाएँ
वे जिसको त्योहार कहें सब उसे मनाएँ।
कभी-कभी जादू हो जाता है दुनिया में
दुनिया-भर के गुण दिखते हैं औगुनिया में
ये औगुनिए चार बड़े सरताज हो गए
इनके नौकर चील, गरूड़ और बाज हो गए।
हंस मोर चातक गौरैयें किस गिनती में
हाथ बाँधकर खड़े हो गए सब विनती में
हुक्म हुआ, चातक पंछी रट नहीं लगाएँ
पिऊ-पिऊ को छोड़ें कौए-कौए गाएँ।
बीस तरह के काम दे दिए गौरैयों को
खाना-पीना मौज उड़ाना छुटभैयों को
कौओं की ऐसी बन आयी पाँचों घी में
बड़े-बड़े मनसूबे आये उनके जी में
उड़ने तक के नियम बदल कर ऐसे ढाले
उड़ने वाले सिर्फ़ रह गए बैठे ठाले।
आगे क्या कुछ हुआ सुनाना बहुत कठिन है
यह दिन कवि का नहीं चार कौओं का दिन है
उत्सुकता जग जाए तो मेरे घर आ जाना
लंबा किस्सा थोड़े में किस तरह सुनाना!
भवानीप्रसाद मिश्र
Broken Eyes 1
नया साल मुबारक!!!!
आज आ गया है मुझसे मिलने और नया आरंभन,
बस दो पल के लिए बिखर जाऊँ उस घने आगोश में,
रोज नया आरोहन हो ऐसे सघन आगोश में॥
नये साल की मेरी तरफ से ढेरों शुभकामनाएँ।
HAPPY NEW YEAR TO ALL MY FRIENDS
मेरा गीत, मेरी मधुशाला…!!!
"काफी समय बीत गया रुह चुराने में…
शायद जीवन और लगे उसे पास लाने में"।
इस दौरान मेरे एक मित्र मधुमये जी जो संगीतकार हैं,
उन्होंने मुझे प्रेरित किया गीत लिखने के लिए और बस
कलमबद्ध गीत की संगीतमय रुपरेखा तैयार हो गई…
वैसे तो ये बहुत पहले ही संगीतबद्ध हो चुका था किंतु
समयाभाव के कारण पोस्ट नहीं कर पा रहा था…
लीजिए प्रस्तुत है मेरा लिखा और मधुमये जी का संगीत
आप सबके सामने…
कैसा लगा ये जरुर बताएँ… वैसे भी पहला प्रयास था मेरा गीत
लिखने का…।
धन्यवाद!!
प्रीत की लगन या मुक्ति मार्ग
आगोश में निशा के करवटें बदलता रहता है सवेरा
लिपटकर उसकी संचेतना में बिखेरता है वह प्रांजल प्रभा…
संभोग समाधि का है यह या अवसर गहण घृणा का
फिर-भी तरल रुप व्यक्त श्रृंगार, उद्भव है यह अमृत का…
उत्साह मदिले प्रेम का…
जागते सवेरे में समाधि…
अवशेष मुखरित व्यंग…
या व्यंग इस रचना का…
शायद मेरे अंतर्तम चेतना का गहरा अंधकार
जो अव्यक्त सागर की गर्जना का उत्थान है…
सालों से इतिहास बना वो कटा-फटा चेहरा
कहना चाहता है कुछ मन की बात…
दिवालों की पोरों में थी उसके सुगंधी की तलाश
प्रकृति के संयोग में आप ही योग बन जाने की पुकार…
विस्तृत संभव यथा में लगातार संघर्ष कर पाने का यत्न
किसके लिए… उस एक संभव रुप लावण्य की प्रतीक्षा…
सारा दिवस बस भावनाओं की सिलवटों में बदल ले गई
आराम की एक शांत संभावना…
शायद इस कायनात में रंजित नगमों की वर्षा में सिसकियों
की अभिलाषा ही टिक सकी हैं…
आज इस निष्कर्ष पर जाकर ठहर गया है मन
ना अब किसी की प्रतीक्षा ना किसी की अराधना
खोल दृष्टि पार देख गगन के वहाँ कोई नहीं है
किसी के पीछे…
वहाँ उन्मुक्त सिर्फ मैं हूँ…"मैं"
खोकर एक संभावना आगई देखो कितनी संभावना…
मधुर प्रीत का सत्य संकरे मार्ग से होकर मुक्ति में समा गया…
नजरे उठकर जाते देख तो रही हैं उस उर्जा को पर
अब चाहता नहीं की वो वापस उतर आये मेरे अंतर्तम में…।
=> आप सभी को मेरी ओर से बीते दिपावली की ढेरों बधाइयॉ
क्या करूँ अपनी फिल्म को लेकर बहुत व्यस्त था… बस खुशी इस बात की
है कि मुझे दो फिल्में और मिल गई हैं, जिसका निर्देशन और लेखन मैं ही
कर रहा हूँ…। मेरी पहली Commercial Film, "AUR- Life Is A Story"
है जिसमें संभवत: Kon-Kona-Sen Sharma को लिया जाए… अभी बात
चल रही है… इसकी Shooting लंदन में मार्च में शुरु होगी जिसकी बजह से
व्यस्तता बढ़ गई है … बस आप सब दुआ करें की मैं अपने लक्ष्य को पूरा कर
लूँ… चूंकि इसका निर्देशन मेरा है तो मुझपर काफी बोझ भी है…।कुछ मन में
भावनाएँ उठी सो पता नहीं क्या लिख दिया है…।
आशा का नभ है विशाल…।
को तकने के बहाने पर याद रहा
मेरा यही साथी जो साथ चला था
तन्हाइयों में उस वक्त…
अपने फिल्म को लेकर इतना व्यस्त
हो गया हूँ कि कब रात आती है
और चली जाती है पता ही नहीं चलता।
वैसे मेरी फिल्म का Promo
सीरिफोर्ट ऑडिटोरियम में 20 मई को
दिखलाया गया था जिसमें दिल्ली की
मुख्यमंत्री ने भी शिरकत ली थी…
कुछ तकनीकी पक्ष का काम बचा है
सो उसी को पूरा करने में लगा हूँ।
आज बहुत दिनों बाद आप सब से
कुछ कहने का दिल हुआ तो आशा
(Hope) को साथ ले आया…।
स्वयं के अंतस में अपने को गहरे उतार कर देखो,
वहाँ अंजन की काली रेखा में भी आंनद घटित होता
ही होगा…
जाग हो जाये अगर जाग से ज्यादा,
वहाँ स्वप्नों के आंगन में भविष्य सार्थक होता
ही होगा…
स्वतंत्र हो कर निर्भीक नये आवरण में झांक कर देखो
वहाँ पार सीमाओं के परम विराट जागरित होता
ही होगा…
बाहर निकल कर सघन अंधकार से आसमान में देखो,
वहाँ आशा के नभ-मंडल में उल्लास योग का संगम होता
ही होगा…
"मात्र सुख की आशा में कहाँ जीवन का हर्ष बहता है,
वह तो सत्य प्रवाह है… जो अनंत गहरे में भीतर ही भीतर
इठलाता है…।"
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