इतना सबकुछ बाहर है…"फिर-भी"……


मौज़ों में फैला आध्यात्म
अज्ञानों पर बैठी गीता-गान है,
नि:सीम शून्य अनंत में
पंखों पर उड़ती आशा है,
उत्सव ही उत्सव मदिरालय में उसके,
क्यों अंतरतम खाली है…
इतना सबकुछ बाहर है, फिर-भी भीतर खाली है…

ममता और करूणा है, कण-कण में
बहती लहरों की तरह परिवर्तित संसार,
नया-नवीन-नूतनता लिए नित्य एक पतवार,
स्तर पर स्तर स्थापित,
क्यों विपन्नता धन कुबेर है…
इतना सबकुछ बाहर है, फिर-भी भीतर खाली है…

अंतहीन क्षितिज की विधा में
अबाध दृष्टि दौड़ती जाती है,
आवरण-आवरण में आनंद
मदीले सौरभ में घुलती जाती है
क्यों सदियाँ परेशान…मन भयभीत आँचल सूना है…
इतना सबकुछ बाहर है, फिर-भी भीतर खाली है…

प्रकृति की कोख में पुलकित ज्ञान-विज्ञान
तत्वों के भीतर कई और तत्वों के उत्सव हैं,
व्यापक युक्ति-युक्त गाम्भीर्य
चरणों से बहती पवित्र गंगा
घट-घट में विराजे विराट हैं,
क्यों अंतस में कृशता…गहरा अंधकार स्थित है…
इतना सबकुछ बाहर है, फिर-भी भीतर खाली है…

पत्थरों से भी पाषाण बनी नियति
हृदय में कुंठित स्वतंत्रता है,
कर्म-योग है पार जाने का रास्ता
पर अनुमानों में स्थित विनाश है,
कल्पना की उड़ान आच्छादित जीवन, माया बनी सारथी है…
इतना सबकुछ बाहर है, फिर-भी भीतर खाली है…

देख नहीं पाता सौंदर्य… विक्षिप्तता
दर्शन का आयाम है,
लगातार भागता "मौन"… कोलाहल
हलचल का आभास है,
उपर वर्षा नीचे नदियाँ, फैला सागर
अत्यंत विशाल है,
क्यों मानव का हर कोना ही बना अभिशाप है…
इतना सबकुछ बाहर है, फिर-भी भीतर खाली है…

"हमारे विचारों में गहनता है,
मगर देख जरा सजग नेत्रों से
बाहर कितनी सघनता है
फिर भी एक सरलता है,
यही तो परमात्मा कृत जगत की
अद्भुत प्रखरता है…"

"अविद्या बैठी है भीतरी नक्षत्रों पर
आकांक्षा की काली स्याही है
महाभारत होती है नस-नस में
तृष्णा की प्यास ललचाई है
बाहर तो भेद में ही अभेद छिपा है
मानव में ही तो ईश्वर बैठा है…"

सांझ में ही भोर भी है,
स्वप्न में ही साकार भी है
जिज्ञासा में ही आशा भी है,
आकार में ही निराकार छवि,
पुकार में ही वह आत्मन है…।
इतना सबकुछ मेरे चारों ओर फिर-भी भीतर का कोना खाली है…

15 comments:

Rachna Singh said...

when you write a chord strikes but words elude . what comment can on give on the comments that you make
on the prevailing circumstance .
very nice divyabh i liked it
and let me also share that evry colured word that you have written can be easily linked to a previaling post on various blogs .

mamta said...

इतना सबकुछ मेरे चारों ओर फिर-भी भीतर का कोणा खाली है…।

बहुत सुन्दर लिखा है। इसके आगे कुछ नही कहना है।

Udan Tashtari said...

बहुत ही सुन्दर रचना. बहुत बधाई.

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति है ।अपने आप को जानने का बहुत बढिया प्रयास है।यथा-

सांझ में ही भोर भी है,
स्वप्न में ही साकार भी है
जिज्ञासा में ही आशा भी है,
आकार में ही निराकार छवि,
पुकार में ही वह आत्मन है…।
इतना सबकुछ मेरे चारों ओर फिर-भी भीतर का कोना खाली है…।

Reetesh Gupta said...

"हमारे विचारों में गहनता है,
मगर देख जरा सजग नेत्रों से
बाहर कितनी सधनता है
फिर भी एक सरलता है,
यही तो परमात्मा कृत जगत की
अद्भुत प्रखरता है…"

हमेशा की तरह सुंदर और गहरी है आपकी कविता..

बधाई...

राकेश खंडेलवाल said...

जिन प्रश्नों ने तुमको घेरा, मैं भी उनमें कभी हुआ गुम
जिन शाखों पर कली प्रफ़ुल्लित,उन पर ही हैं सूखे विद्रुम
क्यों पुरबा का झोंका कोई, अकस्मात झंझा बन जाता
जितना कोई तुम्हें न जाने,उतना जान सको खुद को तुम

मैं उत्तर बन आ तो जाऊं उठे हुए हर एक प्रश्न का
लेकिन उससे पहले तुमको प्रश्न स्वयं बन जाना होगा

Neelima said...

एक परिपक्व और अच्छी कविता !

रंजू भाटिया said...

सुंदर और गहरी अभिव्यक्ति है ....

आकार में ही निराकार छवि,
पुकार में ही वह आत्मन है…।
इतना सबकुछ मेरे चारों ओर फिर-भी भीतर का कोना खाली है…।

बहुत सुन्दर लिखा है। ....यह जैसे सबके दिल की बात कह दी आपने

Anonymous said...

Divyabh ,
Jab "POORNA " ka prasaad mil jata hai, tub "rikt kona bhur jata hai.
Parantu,
usi poornata ke prawaah se, humaree "apoornata " beh ker, usi
aseem, Poornata " mei mil ker,
sada sada ke liye vileen ho jaati hai.
Ye anubhav janya satya hai...
jise Vivekanand ya Arvind jaisee
vibhuteeyon ne anubhav kiya aur bata gaye.
Ishwar, prasad falibhoot ho !
sa sneh ashish,
Lavanya

Anonymous said...

words hv limitations but feeling doesn't hv...'alone in crowd' is true wen i read ur this poem.it's more than mere 'enquiry' as it seems...so it's answer is also not too easy to undrstnd...wat others hv said is true to thm but wat u come out with will b ur experience n ur reply!beautiful sense of thinking!

Monika (Manya) said...

Well,, a great work again... very nice flow of Emotions... all ur questions have all answers in themselves.... Wo kahte hain na ki "dene wale tu ne kami na ki.."

Nischay hi us paramaatama ne hame sab diya shayad jaroorat se jyada hi.. par hamen hi sametana .. khush rahna nahi aata...hum NIraakar ko aakar mein talaashate rahte hain.. wistrit par seemayen lagaa dete hain. aur kabhi kuchh nahi mil pata.. apne banaye daayaron mein swaym bandhe hum.. aur fir azaadi bhi chaahate hain...

"Sabkuchh mere bheetar itna bhar de,, mere andar ka ye Reetapan khaali kar de"....

Anupama said...

I won't say that i got all the meanings.....will go through it once again......What i think is wat u have scribbled cannot be thought about or imagined....It can only be experienced....n tan one will cum to know wat words encrypt....It has got touch of osho's teachings....and a touch of meditating being....very nice

Keep writing

Divine India said...

रचना जी,
बहुत-2 शुक्रिया आपके सुंदर संबल का…।

ममता जी,
आप यहां आई मेरी रचना को सराहा…
धन्यवाद।

समीर भाई,
अब आपसे बारंबार क्या कहा जाए… आप समझ ही गये होंगे :)

परमजीत जी,
कोशिश थी मेरी कि कुछ अपने भीतर के अंधकार पर रोशनी डाली जाए…

Divine India said...

रितेश भाई,
आपका आना सकून देता है…
धन्यावाद।

राकेश जी,
एकदम सत्य हैं आपके वचन…
लड़ाई तो पहले स्वयं से है बाद में अन्य आयेंगे।

नीलिमा जी,
धन्यवाद आपका जो आप यहाँ आईं।

रंजू जी,
बहुत ज्यादा कह दिया…

Divine India said...

आदरणीय लावन्या मै'म,
बहुत सच कहा यह संकेत है भविष्य का…
प्रयास मेरा जारी है देखते है कब कहां पहुंचता हूँ मैं

प्रिय अनुज,
तुमसे ज्यादा मेरे भाव को कौन समझ सकता है…।

अनुपमा,
धन्यवाद यहाँ आने का… मात्र भीतर के खाली पर मेरा यह एक संवाद है…।

मान्या,
कोशिश यही थी की प्रश्नों का हल भी निकलता जाए…
आने का शुक्रिया।